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काठियावाड़के संस्मरण---२

वह मुझे राजकोटके सिवा और कहीं भी न मिला। इस वर्षके अन्ततक काठियावाड़में खादीकी नींव मजबूत हो जाये--इतना ही नहीं बल्कि हम इतना बारीक सूत कातने लगें कि खादीकी साड़ियाँ भी बनाई जा सकें। मैंने देखा है कि यशोदा बहनने अपने पति डाह्याभाईके लिए हाथ-कते सूतकी धोतियाँ बुनवाई थीं। ये धोतियाँ आन्ध्रकी बारीक धोतियोंके मुकाबले में रखे जाने योग्य थीं। सैकड़ों भाई-बहन इतना बारीक सूत क्यों नहीं कात सकते?

राजनीति

परिषद्के समय ऐसे विभाग किये गये थे कि प्रजा चरखे चलाये और खादी पहने और मैं राजनीतिक मामलोंको देखूँ। इस विभाजनका अर्थ तो मैं समझा चुका हूँ लेकिन फिर भी उसे स्पष्ट करनेकी आवश्यकता मालूम होती है। उसका अर्थ यह कि यदि जनता जागृत रहकर अपनी प्रतिज्ञाका पालन करेगी तो मैं भी जागृत रहूँगा और अपनी प्रतिज्ञाका पालन करूँगा। जनता यदि जागृत रहती है तो अपनी प्रतिज्ञाका सफलतापूर्वक पालन कर सकती है क्योंकि सफलता प्राप्त करना उसके अपने हाथमें है। लेकिन सम्भव है कि मैं जागृत रहनेपर भी और अपनी प्रतिज्ञाका पालन करनेपर भी सफल न होऊँ, क्योंकि मेरी सफलता दूसरोंपर निर्भर है। जनताके प्रतिज्ञापालनपर मेरी सफलताका दारोमदार है। बड़े दुःखकी बात तो यह है कि आज भी सूतका राजनीतिसे क्या सम्बन्ध है, यह समझाना पड़ता है। सूत कातनेमें ही जनताकी सामूहिक शक्ति निहित है। मुझे विश्वास है कि उस शक्तिका अदृश्य प्रभाव सर्वत्र पड़ेगा। यह हो या न हो, लेकिन यह आवश्यक है कि जनता मेरी प्रतिज्ञाका अर्थ समझ ले। यह नहीं कह सकता कि मैं कुछ कर सकूँगा ही। जिसे मैं सर्वोत्तम मार्ग समझता हूँ वह मैंने जनताको दिखा दिया है। केवल आन्दोलन करनेसे ही जनता कुछ नहीं प्राप्त कर सकती। राजाओंकी स्थिति भी समझ लेनी चाहिए। निन्दा करनेसे या टीका करनेसे ही कुछ नहीं बनता। इस स्थितिको समझने के लिए ही मैंने परिषद्को राजनीतिक प्रकरणोंके सम्बन्धमें चुप रहने की सलाह दी थी। मैंने प्रतिज्ञा की थी कि अध्यक्षकी हैसियतसे इस सम्बन्धमें जितनी जाँच कर सकता हूँ, उतनी करूँगा। उसका पालन करनेका मैं अब भी प्रयत्न कर रहा हूँ। मैं निश्चित होकर न बैठा हूँ और न बैठूँगा। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि जिसे बीमारी है वह अपनी बीमारीका इलाज ही न करे। मेरी सलाहका मतलब तो सिर्फ यही था कि पूर्वोक्त सहायता ही परिषद्की तरफसे मिल सकती है। यह समझ लेना चाहिए कि न्याय प्राप्त करनेके लिए अगर लोग सत्य और शान्तिपूर्ण उपायोंको काममें लाना चाहें तो उसमें मेरी तरफसे कोई रुकावट न होगी। परिषद्से जितनी भी मदद हो सकेगी वह करेगी। आज उस मददका यह रूप है कि जिन राज्योंके बारेमें शिकायतें हो रही हैं उनके सम्बन्धमें मैं अपनी अनुनय-विनय करनेकी शक्तिका उपयोग करूँ। सफलता तो मामले और उससे सम्बन्धित लोगोंकी सचाई तथा जनताके प्रतिज्ञा-पालनपर निर्भर है। जनताको भी अपनी कार्यदक्षताकी छाप डालनी चाहिए। जनता यदि रचनात्मक कार्य करेगी और आत्मसम्मान बनाये रखेगी तो उसका आत्मविश्वास बढ़ेगा। आज तो