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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दूसरे भागोंकी ही तरह काठियावाड़की भी जनता अपना आत्म-विश्वास खो बैठी है। जनताको भी अपनी कार्यदक्षताकी छाप डालनी चाहिए। लेकिन मेरा अनुभव तो यह है कि काठियावाड़के बहुतसे राज्योंमें स्थिति यह है कि जनता जितनी चाहे उतनी प्रगति कर सकती है। ब्रिटिश प्रशासनमें जनताको जो सुविधाएँ प्राप्त नहीं हैं वे काठियावाड़की रियासतोंमें हैं। रचनात्मक कार्य करके ही जनता इन सुविधाओंका पूरा लाभ उठा सकती है।

१ अप्रैल

काठियावाड़ने मुझे इतना मोह लिया है कि मैंने अप्रैलमें फिर काठियावाड़ जाने के लिए अवकाश निकाला है। बोटादकी अन्त्यज शाला, अमरेली खादी कार्यालयका काम और मढडाका आश्रम देखने के लिए मुझे जाना तो था ही। लेकिन पिछली बार मैं वहाँ नहीं जा सका था। जो लोग मुझे कहीं भी ले जाना चाहते है वे देवचन्दभाई और अमरेली कार्यालयके साथ इस सम्बन्धमें बात कर लें। मैं चाहता हूँ कि जहाँ खादीका आकर्षण न हो वहाँ मुझे ले जानेकी बात कोई न सोचे। अप्रैलमें बहुतसे लोगोंके सदस्य बननेकी आशा करता हूँ और यह आशा भी करता हूँ कि जिस रुईका वादा किया गया था वह प्राप्त हो जायेगी, उसके लिए और लोग भी वादा करेंगे। जिन केन्द्रोंको खोलने के बारेमें राजकोटमें विचार हुआ है वे सब केन्द्र काम करने लगेंगे।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ८-३-१९२५

१५१. टिप्पणियाँ

एक बहनकी भावना

भाई विट्ठलदास जेराजाणी लिखते हैं:

इसका रस तो जिसने अनुभव किया है वही जानता है। जिसने अपने हाथकते सूतका और अपने हाथसे बुना या किसी दूसरेसे बुनवाया हुआ कपड़ा पहना है वह इस बहनको आँखोंसे गिरे हुए मोती-जैसे आँसुओंका मूल्य समझ सकता है। एक भाईका अपने हाथसे कते हुए सूतका बना तौलिया खो गया, जबतक वह मिल न गया तबतक उसकी बचैनी कम नहीं हुई। हम एक दिया-सलाईकी सींक या एक आलपिनका कोई मूल्य नहीं समझते; किन्तु यदि वह हमारी ही बनाई हुई हो तो? अपने हाथकी पकी रसोईमें जो मिठास और भाव होता है, वही अपने हाथसे काते गये सूत की बनी खादीमें होता है।

१. यह पत्र यहाँ उद्धृत नहीं किया गया है। इसमें केन्द्र में बुनाईके लिए दी गई अपने हाथके कते सूतकी साड़ीके केन्द्रले गुम हो जानेपर एक बहनके खेदका वर्णन था। बादमें वह साड़ी मिल गई थी।