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१५२. भाषण: एर्नाकुलम्में

८ मार्च, १९२५

अभिनन्दन-पत्र तथा उसमें अभिव्यक्त भावनाओंके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। यह मेरे लिए अत्यन्त दुःखकी बात है कि इस समय मेरे साथ न तो मेरे मित्र मौलाना शौकत अली है और न मौलाना मुहम्मद अली। जैसाकि आप जानते हैं भारतका दौरा करते समय हम सदा ही साथ रहे है। किन्तु उनमें से एक भाई आज पत्रकारितामें व्यस्त हो गये हैं और दूसरे महान् भाईने बम्बई और बम्बईके आसपासके कार्योंमें अपनेको बिलकुल तल्लीन कर लिया है। चूँकि मैं केवल वाइकोम तथा उस प्रदेशमें, जहाँ मुझे अपने वर्तमान दौरेमें काम करना है, प्रवेश करने के लिए इस प्रान्तसे गुजर रहा हूँ, मुझे आपका यह अभिनन्दन-पत्र स्वीकार करते हुए अत्यन्त प्रसन्नता होती है। यह यात्रा मैंने शान्तिके उद्देश्यसे की है, इसलिए मैं चाहता हूँ कि मुझे वह सम्पूर्ण समर्थन आप दें जो मुझे इस देशके कोने-कोनेसे सहमतिके रूपमें मिल सकता है। सबसे अधिक शुभकामना मैं उन लोगोंकी प्राप्त करना चाहता हूँ जिनका प्रार्थनामें विश्वास है, चाहे वे हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, यहूदी या पारसी कोई भी हों। वे चाहे किसी भी धर्ममें विश्वास क्यों न करते हों, यदि वे प्रार्थनामें विश्वास करते हैं तो मैं चाहता हूँ कि वे मेरे इस उद्देश्यकी सफलताके लिए प्रार्थना करें।

कुछ दूसरी चीजें भी हैं जिनमें मेरी दिलचस्पी है और जिनमें आपकी भी दिलचस्पी होनी चाहिए। इससे कोई भी फर्क नहीं पड़ता कि आप खास ब्रिटिश भारतके निवासी हैं या किसी रक्षित-राज्यके। मेरा अभिप्राय उस हिन्दू-मुस्लिम एकता से है जो भारतके विभिन्न धर्मोंको माननेवाली जातियोंकी एकताका ही रूप है। मुझे मालूम हुआ है कि इस राज्यमें हिन्दुओं और मुसलमानों या हिन्दुओं या अन्य जातियोंके बीच कोई समस्या नहीं है। यह मेरे लिए अत्यन्त प्रसन्नताका विषय है कि इस राज्यमें सभी जातियाँ शान्ति, सौहार्द तथा भ्रातृभावके साथ रहती है। ईश्वर करे ऐसी स्थिति हमेशा ही बनी रहे। किन्तु जहाँतक चरखेका सम्बन्ध है, आपकी इस तरह प्रशंसा नहीं की जा सकती। मद्रास नगर-निगम द्वारा दिये गये अभिनन्दन-पत्रका उत्तर देते हुए मैंने अवसरका लाभ उठाकर इस तथ्यका उल्लेख किया था कि तबतक भारतमें किसी भी नगरपालिकाका कार्य पूरा नहीं माना जा सकता जबतक कि वह अपनेको अपने निम्नतम न कर ले। अक्सर यह जान पड़ता है कि इस क्रमको उलट दिया गया है, अर्थात् नगरपालिकाएँ उन्हें ही देती हैं जिनके पास पहले ही काफी है और उन्हींसे अधिक लेती है जिनके पास कि पहलेसे ही बहुत कम है। (हँसी) वे धनी और शक्तिशाली लोगोंकी ज्यादा परवाह करती हैं और गरीब और दलितकी बिलकुल भी परवाह नहीं करतीं; या कम करती हैं। (तालियाँ) मुझे आशा है कि

१. एर्नाकुलम्-निगम द्वारा दिये गये अभिनन्दन-पत्रके उत्तर में।