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भाषण: कोचीनकी सार्वजनिक सभामें

यह बात इस नगरपर लागू नहीं होती होगी और जिस वस्तुको जो स्थान दिया जाना चाहिए यहाँ उसे वही स्थान दिया जा रहा होगा। इसलिए मेरा चरखेका सुझाव देना आपके प्रशंसनीय कार्योंमें केवल एक कार्य और जोड़ना है। यह मेरे लिए गरीब और अमीरके बीच अटूट सम्बन्धका प्रतीक है। यह भारतकी जनताकी गरीबीका एक निश्चित हल है। इसलिए मैं आपसे कहता हूँ कि आप चरखेको अपने स्कूलोंमें स्थान दें और साथ ही इससे प्राप्त होनेवाली चीज, खद्दरको अपनायें। मैं आपसे कहता हूँ कि आप अपने घरोंमें इसे जो पवित्र स्थान अतीतमें प्राप्त था, वही फिरसे दें। मैंने इसे इस युगका एक यज्ञ कहने में संकोच नहीं किया है। जैसा श्रेष्ठ जन करते हैं, वैसा ही इतर प्रजा भी करती है। इसलिए आप जबतक स्वयं चरखेको नहीं अपनायेंगे तबतक आपको इसका सन्देश भारतके गरीब घरोंतक पहुँचाने में सफलता नहीं मिलेगी। ईश्वर आपको मेरी नम्रतापूर्वक दी गई इस सलाहका अनुसरण करनेके लिए साहस, बल, और सद्भावना प्रदान करे।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, ९-३-१९२५

१५३. भाषण: कोचीनकी सार्वजनिक सभामें

८ मार्च, १९२५

मित्रो,

मुझे इस बातकी बड़ी खुशी है कि आखिरकार मैं आपसे मिल सका। जब मैंने वाइकोम आनेका निश्चय किया था तब मुझे इस बातकी कोई आशा नहीं थी कि वहाँ रवाना होनेके पहले मेरा यहाँ आना जरूरी और सम्भव हो जायेगा। मैं जानता हूँ कि आपका नगर ऐतिहासिक है। यहाँ आकर न जाने कितनी बातें मनमें जाग उठी हैं। वे सभी यादें सुखद नहीं हैं। आप समुद्रके किनारे रहते हैं, इसलिए आप जानते हैं कि साहसिक कार्योंसे क्या-कुछ कर दिखाया जा सकता है। समुद्र साहसिक कार्योंका प्रतीक है। किन्तु मैं आपसे वैसे साहसिक कार्योंकी अपेक्षा नहीं रखता जो समुद्री किनारेके लोगोंसे जुड़े हुए माने जाते हैं। हमें जिस बातकी जरूरत है वह तो यह है कि हममें अपने राष्ट्रीय जीवनमें साहसिक कार्य करनेकी भावना आये। यदि हमें ऐसा लगता है कि हमने अपने लक्ष्यकी ओर नहींके बराबर प्रगति की है तो इसका कारण यह है कि हममें साहसिक कार्य करनेकी भावना नहीं है। उदाहरणके लिए हिन्दू धर्मकी बुराइयोंको ढूँढ़नके लिए साहसिक भावनाकी आवश्यकता है। जिन लोगोंमें यह भावना नहीं है वे जिन परिस्थितियोंमें रहते हैं, उन्हींसे सन्तुष्ट रहते हैं। वे यह तक देखनेकी जरूरत नहीं मानते कि वे बुरी हैं या भली। दक्षिण आफ्रिकाके अपने २० वर्षोंके प्रवासके बाद जबसे भारत आया हूँ तभीसे हिन्दुओंसे कहता आ रहा हूँ कि हमारे हिन्दू धर्मका एक कलंक है; हमें उसे दूर करना होगा। यह कलंक अस्पृश्यता है।