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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मुझे यह कहते हुए दुःख होता है कि यहाँ तो अस्पृश्यताके साथ अनुपगम्यता भी जुड़ी है। मैं यहाँ कट्टरपन्थियोंसे तर्क करने नहीं आया हूँ। मैं शान्तिका सन्देश लेकर आया हूँ। मैं उनसे विवेकसे काम लेनेकी अपील करता हूँ; उनसे कहता हूँ कि अस्पृश्यता और अनुपगम्यता हिन्दू धर्मका अंग हो ही नहीं सकतीं। मैं उनसे यह कहने के लिए आया हूँ कि जो सत्याग्रही वाइकोममें अत्यधिक कठिनाइयोंके बीच संघर्ष कर रहे है वे धर्मको नष्ट करनेके लिए नहीं, बल्कि उसमें सुधार करनेके लिए निकले हैं। मैं उन्हें इस संघर्षके सभी फलितार्थ बताने आया हूँ। मैं उन्हें यह बताने के लिए भी आया हूँ कि यदि हमें यह भरोसा हो जाये कि ये बातें खराब हैं तो फिर हमें उनके वर्तमान रूपसे सन्तुष्ट नहीं रहना चाहिए। इसलिए मुझे इससे प्रसन्नता होती है कि मैं अपने साथ आपकी शुभकामनाएँ और सहानुभूति ले जाऊँगा, क्योंकि आपकी ओरसे नगरपालिकाने मुझे जो अभिनन्दन-पत्र भेंट किया है उसमें विश्वास दिलाया गया है कि आपकी सहानुभूति और आपका समर्थन मेरे साथ है। मैं यह भी चाहता हूँ कि आप इस भावनाको थोड़ा और आगे ले जाकर यह मालूम कर लें कि सारे भारतमें जनताकी निरन्तर बढ़ती हुई गरीबीका एक प्रबल कारण यह है कि वर्षके करीब एक तिहाई भागमें उनके पास करनेके लिए कुछ भी नहीं होता। मैं चाहूँगा कि आप भी मेरी तरह यह जान लें कि केवल सौ वर्ष पहले चरखके लिए घर-घरमें स्थान था, और यदि आज भी लोगोंको चरखा दे दिया जाये, तो उन्हें फुरसतके समयमें लगे रहने योग्य काफी काम मिल जायेगा। किन्तु यदि हम लोग विदेशी या मिलके कपड़े पहनना नहीं छोड़ते तो फिर हमारा अपने लाखों घरोंमें चरखको दाखिल कराना बिलकुल बेकार होगा।

इसलिए जब मैं यात्रामें होता हूँ तब भी जिन स्त्री-पुरुषोंसे मिलता हूँ, उनसे कहता हूँ कि विदेशी या मिलके बने कपड़ोंको छोड़ना और उनके स्थानपर हाथसे तैयार किये गये खद्दरको पहनना उनका अनिवार्य कर्त्तव्य है। मलाबारमें आपका ढेर सारे कपड़े पहनना व्यर्थकी बात है। मुझे इसमें जरा भी सन्देह नहीं कि आप लोगोंमें से बहुत-से लोग इस समय मुझसे ईर्ष्या कर रहे होंगे। यहाँके इस मौसममें हम जितने कम कपड़े पहनें प्रत्येक दृष्टिकोणसे उतना ही अच्छा है। मैं चाहता हूँ कि आप बिना सोचे-समझे इस विचारको सही न मानने लगें कि प्रतिष्ठा और सभ्यताके लिए ज्यादा कपड़े पहनना कोई आवश्यक चीज है। (हँसी और हर्षध्वनि)। "वह व्यक्ति सुन्दर नहीं है जो सुन्दर कपड़े पहनता है, बल्कि सुन्दर वह है जो सुन्दर काम करता है।" सभ्यता, संस्कृति और प्रतिष्ठाकी सर्वाधिक सच्ची कसौटी चरित्र है, न कि कपड़े। जब कभी मैं भारतके लोगोंको यह कहते सुनता हूँ कि वे खद्दरके युगसे बहुत आगे बढ़ चुके हैं और इसलिए अब उनका उस बर्बर युगमें जबकि उनके पूर्वज खद्दरके कपड़ोंसे सन्तुष्ट हो जाते थे, वापस जाना असम्भव है तो मुझे बड़ा दुःख होता है। जिन लोगोंका ऐसा विचार है, मैं चाहूँगा कि आप उन्हें यह उत्तर देनेके लिएमेरे साथ हो जायें कि भारतको गरीबी एवं कंगालीसे मुक्त करनेके लिए हम सबको खद्दर ही पहनना चाहिए। उसका सर्वोत्कृष्ट तरीका यही है। आपमें से जो लोग सजधज और महीन वस्त्रोंको पसन्द करते हैं वे अपनी इच्छानुसार सुन्दर महीन सूत कात