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पत्र: सुब्रह्मण्यम्को

या कतवाकर उसे प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि आप प्रयास करेंगे, अपनी बुद्धिका उपयोग करेंगे और कोचीनमें हर घरको चरखेसे सशोभित करेंगेऔर साथ ही इस बातका भी ध्यान रखेंगे कि कोचीनका प्रत्येक व्यक्ति खद्दर ही पहने और कुछ नहीं।

मुझे हिन्दू-मुस्लिम प्रश्नपर कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है। मैं जानता हूँ कि आपको अली भाइयोंमें से किसीका भी न आना खल रहा है। अभीतक सारे भारतकी यात्रामें उन दोनोंमें से एक भाई मेरे साथ होता ही था किन्तु अब ऐसा करना सम्भव नहीं था। किन्तु मैं आपको इसलिए बधाई देना चाहता हूँ कि यह हिन्दू-मुस्लिम समस्या आपके बीच नहीं है। यह मेरे लिए अत्यन्त हर्षकी बात है कि इस राज्यमें विभिन्न धर्मोंको माननेवाली सभी जातियाँ सद्भावना और भाईचारेके साथ रहती हैं। मैं चाहता हूँ कि हम भारतके प्रत्येक भागमें आपके प्रशंसनीय उदाहरणका अनुकरण कर सकें। अपने घरोंमें चरखा और खद्दर दाखिल करनेके लिए तथा हिन्दू धर्मको अस्पृश्यताके अभिशापसे मुक्त करने के लिए ईश्वर आपको बल और बुद्धि प्रदान करे। ईश्वर करे इस सुन्दर देशमें रहनेवाली सभी जातियाँ सदैव वैसे ही प्रेमके साथ एक होकर रहें, जैसे आज रहती हैं।

[अंग्रजीसे]
हिन्दू, ९-३-१९२५

१५४. पत्र: सुब्रह्मण्यम्को

[९ मार्च, १९२५]

सुब्र[ह्मण्यम्]

पत्रके लिए धन्यवाद। कल सुबह ८ बजे जिला मजिस्ट्रेटके घर आपसे और अन्य मित्रोंसे मुलाकात होगी। वे सभी लोग जिनका आपने उल्लेख किया है और अन्य जिन्हें आप चुनें, भेंटके समय वहाँ आ जायें। मैं अपनी ओरसे उन व्यक्तियोंके सिवा जिनका कि आपने उल्लेख किया है और किसीको अपने साथ नहीं लाऊँगा। किन्तु कृष्णस्वामी अय्यरके यहाँ न होने के कारण श्रीयुत कैलप्पन नय्यरको जो उनकी जगहपर आये हैं, अपने साथ लाना चाहता हूँ; बशर्ते कि आप इसे स्वीकार करें।

आपने ठीक ही कहा है कि दोनों पक्षोंके बीच कोई दुर्भावना नहीं होनी चाहिए। मैं भी यही चाहता हूँ। हमें एक-दूसरेके विचारोंके प्रति सहिष्णु होना ही चाहिए।

अनुपगम्यताकी आपने और दूसरे मित्रोंने जो व्याख्या की है उसके पक्षमें मैं किसी और का नहीं, शंकराचार्यका प्रमाण चाहता हूँ। यदि यह प्रश्न सौहार्द तथा

१. इस पत्रमें उल्लिखित भेंट १० मार्च, १९२५ को हुई थी।