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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सन्तोषपूर्ण ढंगसे एवं उस धर्मकी प्रतिष्ठा और शुद्धताके अनुरूप हल हो जाये, जिसमें हमारा और आपका समान रूपसे विश्वास है तो मुझे अत्यन्त प्रसन्नता होगी।

आपका,

धर्म-सेवक,

[पुनश्च:]

मुझे खेद है कि मैं मलयालम नहीं जानता। आपके लिए मेरी हिन्दीको अनूदित कराना कठिन होगा, इसलिए मैं अपना उतर अंग्रेजीमें भेज रहा हूँ।

अंग्रेजी पत्र (एस० एन० १०५९४) की माइक्रोफिल्मसे।

१५५. पत्र: डा० वरदराजुलु नायडूको

१० मार्च, १९२५


प्रिय डा० वरदराजुलु,

गुरुकुल विवादके सन्दर्भ में मैंने श्री अय्यरसे कहा कि जबतक मैं आपसे नहीं मिलता और आपके विचार नहीं सुन लेता तबतक मैं अपना निश्चित मन्तव्य प्रकट नहीं करूँगा। आपकी बात सुननेके बाद मुझे लगता है कि जहाँतक ब्रह्मचारियोंका सम्बन्ध है यदि ब्राह्मण लड़कोंके माता-पिता जोर देते हैं कि उनके बच्चोंको अलग भोजन करनेकी अनमति मिलनी चाहिए तो इनकी नैतिक आपत्तियोंको मान लेना चाहिए। किन्तु भविष्यके लिए यह घोषणा कर देनी चाहिए कि ऐसे किसी भी ब्रह्मचारीको यहाँ भरती नहीं किया जायेगा जिसके माता-पिताको उसके अन्य ब्रह्मचारियों के साथ पंक्तिमें बैठकर भोजन करने में आपत्ति हो। मुझे आपसे मालूम हुआ है कि गरुकूलमें रसोइया सदैव ब्राह्मण ही रहेगा। आपकी जो आपत्ति है (वह उचित ही है) वह है अब्राह्मण लड़कोंको ब्राह्मण लड़कोंसे अलग रखने में। मेरा भी यह निश्चित विचार है कि जब लड़के भोजन करें तो वे सभी एक ही पंक्तिमें बैठें।

हृदयसे आपका,

मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, २१-३-१९२५


१. शेरमा देवीमें स्थित तमिल गुरुकुलमें प्रवेश सम्बन्धी प्रश्न।

२. उक्त गुरुकुलके वी०वी० एस० अय्यर।