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१५६. वाइकोमके सवर्ण हिन्दू नेताओंके साथ बातचीत

[१० मार्च, १९२५]

गांधीजी: क्या यह उचित है कि हिन्दुओंकी एक समूची जातिको तथाकथित निम्नवर्गमें उत्पन्न होनेके कारण उन सड़कोंके उपयोगसे वंचित कर दिया जाये जिनका उपयोग अहिन्दू, अपराधी, दुश्चरित्र और यहाँतक कि कुत्ते और ढोर भी कर सकते हैं?

नम्बूद्री न्यासी: इसके लिए क्या किया जा सकता है? वे अपने कर्मोंका फल भोग रहे हैं।

इसमें कोई सन्देह नहीं कि अछूतोंके रूपमें उत्पन्न होनेकी वजहसे उन्हें जो काम मिला है उसके कारण वे वैसे ही कष्ट भोग रहे हैं। अब आप उनके इस कष्ट को और क्यों बढ़ाते हैं? क्या वे अपराधियों और जानवरोंसे भी गये बीते हैं?

अवश्यमेव वे ऐसे होंगे; नहीं तो ईश्वर उन्हें अछूतोंके घरोंमें जन्म लेनको सजा ही क्यों देता?

ईश्वर उन्हें सजा दे सकता है; किन्तु हम मानव कौन हैं जो ईश्वरका स्थान ग्रहण कर उनकी सजा बढ़ायें?

हम तो केवल निमित्त हैं। उन्होंने अपने कर्मोंका जो दण्ड पाया है; उसे उनपर लागू करने के लिए ईश्वर निमित्त रूपमें हमारा उपयोग करता है।

किन्तु मान लीजिए, अवर्ण कहें कि वे आपको सजा देनेके लिए ईश्वरके हाथोंमें निमित्त-रूप हैं तो आप क्या करेंगे?

तब सरकार उनके और हमारे बीच आकर उन्हें रोकेगी। अच्छे आदमी भी ऐसा ही करेंगे। महात्माजी, हम आपसे प्रार्थना करते हैं कि आप अवर्णको हमारे युगों पुराने अधिकार छीननेसे रोकिये।

क्या आप यह सिद्ध कर सकते हैं कि आपको उन्हें सड़कोंका उपयोग न करने देनेका अधिकार है? मेरा विश्वास है कि पद-दलित जातियोंको भी सड़कोंके उपयोगका उतना ही अधिकार है जितना आपको है। शास्त्रोंमें कहीं भी ऐसा नहीं लिखा है कि वे इन सड़कोंका उपयोग नहीं कर सकते हैं। क्या आप जानते हैं कि दीवान साहबके विचारानुसार भी आपने गलत रुख अपनाया है?

१. इसका संक्षिप्त विवरण देते हुए हिन्दूने अपने ११-३-१९२५ के अंकमें लिखा है : "कल सबेरे ही श्री गांधी सत्याग्रहियोंकी प्रार्थनामें शामिल हुए...श्री गांधी इंडनतुरिरत्ति नम्ब्यातिरीके निवास स्थानपर स्थानीय कट्टरपन्थी सवर्ण हिन्दुओंके विरोधी नेताओंसे मिले। जो लोग श्री गांधोके साथ गये थे, उनमें सर्वश्री राजगोपालाचारी, महादेव देसाई, रामदास गांधी तथा कृष्णस्वामी अय्यर थे। उन्होंने बातचीत तीन घंटेसे अधिक समयतक की जिसमें व्यावहारिक प्रस्ताव इस दृष्ठिसे रखे गये कि संघर्ष जल्दी ही समाप्त हो जाये। वे वैकल्पिक प्रस्ताव थे: पंच निर्णय, जनमत संग्रह तथा चुने हुए पण्डितों द्वारा शंकरकी स्मृतियोंका परीक्षण। विरोधियोंने इनमें से किसीको भी नहीं माना"।