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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दीवान साहब भले ही ऐसा मानते हों। वे चाहें जैसा विचार रखें; यह उनकी मर्जीकी बात है। महात्माजी, आप इन जातियोंके लिए दलित शब्दका उपयोग क्यों करते हैं? और क्या आप जानते हैं कि वे दलित क्यों हैं?

जी हाँ! इसका भी ठीक वही कारण है, जिसके लिए डायरने जलियाँवाला बागमें निर्दोषोंका संहार किया था।

इसलिए आपके विचारमें जिन्होंने यह प्रथा चलाई, वे डायर कहलाये? क्या आप शंकराचार्यको डायर मानेंगे?

मैं किसी भी आचार्यको डायर नहीं कहता। किन्तु मैं आपकी कार्यवाहीको जरूर डायरशाही मानता हूँ। यदि कोई आचार्य इस प्रथाको लागू करनेके लिए सचमुच उत्तरदायी है तो उसका अज्ञान भी उतना ही भयानक माना जायेगा जितना कि जनरल डायरका था।

किन्तु हम प्राचीन प्रथाको छोड़ कैसे सकते हैं? आप कहते हैं कि सत्याग्रही कष्ट उठा रहे हैं। कष्ट तो हम उठा रहे हैं। सत्याग्रही मन्दिरके द्वारपर बैठे रहते हैं। कहीं उनकी छाया हमें अपवित्र न कर दे, इसलिए हमें लम्बे और चक्करदार मार्गसे मन्दिर जाना पड़ता है। क्या यह कोई बड़ा कष्ट नहीं है?

निश्चित रूपसे यह असाधारण कष्ट है। इसपरसे तो मुझे भेड़िये और मेमनेकी कहानी याद आ जाती है। मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप कमसे-कम तर्ककी बात तो करें।

धार्मिक मामलों में तर्क काम नहीं देता।

यदि यह कोई पुरानी सनातनी प्रथा होती तो इसे भारतमें सर्वत्र प्रचलित होना चाहिए था। लेकिन मैं इसे देशके अन्य किसी भागमें प्रचलित नहीं देखता।

निश्चित रूपसे अस्पृश्यता भारतके हर भागमें मिलती है। हम अस्पृश्यताको थोड़ा और आगे ले गये हैं। बस इतना ही।

आप कहते हैं कि ये लोग अपराधियोंसे भी गये-बीते हैं। मान लीजिए कि कल ये मुसलमान या ईसाई बन जायें तो क्या फिर ये अपराधी नहीं रहेंगे?

(नम्बूद्री न्यासी मौन रहा। किन्तु कमिश्नर देवस्वम्ने उसकी ओरसे उत्तर दिया: नये मुसलमान या ईसाईको यह अधिकार नहीं होगा। पुराने ईसाई और मुसलमान ही इस अधिकारका उपभोग करते हैं।)

राजगोपालाचारी: तो क्या ईसाई और मुसलमान ईश्वरके नियमों और आदेशोंको उलट सकते हैं?

(कोई उत्तर नहीं।)

गांधी: आप अपने तर्ककी पुष्टिमें शंकराचार्यको उद्धृत करते हैं। क्या आप यह उद्धरण मुझे भी दिखायेंगे?

न्यासी: अवश्य।