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१५७. भाषण: वाइकोमकी सार्वजनिक सभामें

१० मार्च, १९२५

मित्रो,

मैं जानता हूँ कि आप मुझे इस बातके लिए तो क्षमा कर ही देंगे कि मैं खड़े होकर भाषण नहीं दे सक रहा हूँ, साथ ही मैं यह भी आशा रखता हूँ कि आप मेरे कुछ मिनट विलम्बसे आनेके लिए भी मुझे क्षमा करेंगे। मैं अपनी ओरसे आपको विश्वास दिला सकता हूँ कि मेरे यहाँ आने में जो देरी हुई है उसका कारण व्यक्तिगत नहीं है। जिस उद्देश्यको लेकर मैं यहाँ आया हूँ, उसीके लिए मैं सारा दिन व्यस्त रहा। आप लोग इतनी बड़ी संख्यामें यहाँ उपस्थित हैं, यह देखकर मुझे बड़ी प्रसन्नता होती है, क्योंकि मैं आप सबको अपने आनेका उद्देश्य बता सकूँगा।

किन्तु सबसे पहले मैं उन सब लोगोंको धन्यवाद देना चाहता हूँ, जिन्होंने मुझे कल अभिनन्दन-पत्र भेंट किये थे। जब अभिनन्दन-पत्र भेंट किये जा रहे थे उस समय मुझे एक पत्र मिला जिसमें अभिनन्दनका विरोध किया गया था और मुझे विश्वास दिलाया गया था कि यह अभिनन्दन-पत्र वाइकोमके रहनेवाले सभी लोगोंकी भावनाओंका प्रतिनिधित्व नहीं करता (शर्म, शर्म)। मैं सहर्ष इस विरोधको स्वीकार करता हूँ और आपपर उस स्वीकृतिको प्रकट भी कर रहा हूँ। उस पत्रपर कुछ सज्जनोंके हस्ताक्षर थे, और इसलिए जाहिर है कि कमसे-कम इन लोगोंका समर्थन तो अभिनन्दन-पत्रको या उसको शब्दावलीको प्राप्त नहीं था। मुझे इससे भी आश्चर्य नहीं हुआ कि इस अभिनन्दन-पत्रको वाइकोमके सभी लोगोंकी स्वीकृति नहीं मिली है। मैं जानता हूँ कि दुर्भाग्यसे आप सब एक अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रश्नपर सहमत नहीं हैं। जहाँतक मेरा अपना प्रश्न है, अभिनन्दन-पत्रका न दिया जाना ही मुझे अधिक रुचिकर लगता है। किन्तु अभिनन्दन-पत्र भेंट किये ही जाते हैं तो मुझे उनसे जिन सभाओंमें भाषण देन होते हैं भाषणका मसाला मिल जाता है और इस अभिनन्दन-पत्रसे यह तथ्य भली-भाँति प्रकट हो जाता है। जिन लोगोंने आज मुझे अभिनन्दन-पत्र दिया है उन्हें भी मैं धन्यवाद देता हूँ। उसमें भी उसी विषयको, जिसके कारण मैं यहाँ आया हूँ उठाया गया है। वह विषय है अस्पृश्यता, अनुपगम्यता और उन्हें दूर करनेका तरीका अर्थात् वाइकोममें एक विशिष्ट प्रणाली द्वारा अपनाया गया सत्याग्रह। जैसा कि आप जानते हैं, प्रारम्भसे ही इस संघर्षके प्रति मेरी गहरी सहानुभूति रही है और मैं इसकी हार्दिक सराहना करता रहा हूँ। सम्भव है कि सत्याग्रह चलानेवालोंने इस संघर्षमें कोई गलती की हो। संसारमें ऐसा कौन है जिससे गलती न होती हो, किन्तु मुझे इस बातसे सन्तोष है कि यदि कोई गलती हुई भी है तो वह जानबूझकर नहीं की गई। सत्याग्रह, अपने नामके समान ही, कुछ हदतक एक नया सिद्धान्त है। या यों कहिये कि इसमें एक पुराने सिद्धान्तको नये ढंगसे प्रस्तुत किया गया है।