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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उनकी मानवतासे और उनके हिन्दुत्वसे अपील की। मुझे खेदके साथ स्वीकार करना पड़ता है कि मैं उनपर प्रभाव नहीं डाल सका। मुझे आशा थी कि मैं डाल सकूँगा; किन्तु निराशा एक ऐसा शब्द है जो मेरे शब्दकोशमें नहीं है (हँसी)। मैं तभी निराश होऊँगा जबकि मैं अपनेसे, ईश्वरसे तथा मनुष्यतासे निराश हो जाऊँगा। लेकिन जैसे मैं ईश्वरपर विश्वास करता हूँ, जैसे मैं इस तथ्यपर विश्वास करता हूँ कि हम यहाँ पर एक साथ बैठे हैं, साथ ही जैसे मैं मानवतापर विश्वास करता हूँ, क्योंकि हमारे सारे मतभेदों और हमारे सारे झगड़ेके बावजूद मानवता जीवित रहती है, उसी प्रकार मैं इसपर भी विश्वास करता हूँ कि जिस सत्यके प्रतिनिधि होनेका दावा मैं इस समय कर रहा हूँ वह यहाँ रहनेवाले मेरे कट्टरपन्थी मित्रोंपर अपना प्रभाव डालेगा।

वाइकोमके सत्याग्रहियोंके नामपर और उनकी ओरसे मैंने अपने इन मित्रोंके सामने तीन उदार प्रस्ताव रखे हैं। ये प्रस्ताव मेरे लिए अपरिहार्य है। किन्तु मैंने उन्हें खुली छूट दी है कि वे चाहें तो उन्हें स्वीकार करें और चाहें तो अस्वीकार करें। मैंने उन्हें समझानेकी कोशिशकी है कि उन्हें, चाहे परीक्षणके रूपमें ही सही, ये प्रस्ताव स्वीकार कर लेने चाहिए। मुझे इस एकपक्षीय इकरारपर जरा भी संकोच नहीं हुआ है, क्योंकि उस सत्यपर जिसपर मैं निश्चित रूपसे विश्वास करता हूँ, और जिसका मैं प्रतिनिधित्व करता हूँ, मुझे विश्वास है। मैं झगड़को उत्तेजित करने एवं बढ़ानेके लिए नहीं आया हूँ, बल्कि कट्टरपन्थियों और उन लोगोंके बीच जो आज मनुष्यता और न्यायके नामपर काम करने की कोशिश कर रहे हैं, शान्ति और सद्भावना स्थापित करनेके लिए आया हूँ। यद्यपि कभी-कभी ऐसा लगता है कि मैं लड़ रहा हूँ, किन्तु मेरा उद्देश्य कभी लड़नेका नहीं रहा, न मैंने कभी यह कोशिश की है कि लड़ाई लम्बी हो, बल्कि मेरा उद्देश्य तो जल्दीसे-जल्दी शान्ति स्थापित करनेका रहा है। जब मैंने असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ किया था तब एक अंग्रेज मित्रने मुझसे कहा कि आपका असहयोग ऊपरी मनसे ही है और सच कहें तो आप सहयोगके लिए ही उत्सुक हैं। मैंने तुरन्त उनकी बात स्वीकार कर ली और मैंने उनसे कहा कि आपने मेरे हृदयको सही रूपमें समझा है। और मैं अपने कट्टरपन्थी भाइयोंको भी विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि मेरा इस मामलेमें भी यही रुख है। सत्याग्रह चल रहा है लेकिन यह उनके चाहते ही बन्द कर दिया जायेगा। यह उनपर निर्भर करता है कि वे कोई उचित प्रस्ताव रखें। वह स्वीकार कर लिया जायेगा, केवल ध्यान यही रखना है कि उसमें सत्यका गला न घोंटा जाये। सत्याग्रही अपनी माँगें सदैव कमसे-कम ही रखता है। और इस संघर्ष में भी कमसे-कम माँग रखी गई है। इस प्रकारकी उचित माँग रखना ही सही है कि जो माँगते ही स्वीकार करने योग्य हो। इसलिए यह समझ लेना चाहिए कि इस संघर्षके बारेमें मनमें कोई दुराव-छिपाव नहीं है।

मैंने भारतके हिन्दुओंको बार-बार बताया है कि अस्पृश्यता-निवारण, मेरे लिए तथा उन लोगोंके लिए जो आज उस पवित्र संघर्षमें रत हैं, क्या अर्थ रखता है। इसका अर्थ वर्णाश्रम धर्मको भंग करना नहीं है। इसका अर्थ अन्तर्जातीय भोजन और अन्तर्जातीय विवाह भी नहीं है। किन्तु इसका इतना अर्थ जरूर है कि मानव