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भाषण: वाइकोमकी सार्वजनिक सभामें

और मानवके बीच ऐसे सामान्य सम्बन्ध जो कि किसी भी सभ्य समाजमें होने चाहिए, स्थापित हों। इसका यह अर्थ जरूर है कि यदि पूजाके स्थान किसी व्यक्तिके लिए खुले हैं तो वे उन सबके लिए, जो हिन्दू कहलाते हैं, खुले रहने चाहिए। किन्तु मैं यह बात स्वीकार करता हूँ कि यदि कोई विशिष्ट वर्ग, मान लीजिए ब्राह्मण मन्दिर बनाना चाहता है और उनमें अब्राह्मणोंको नहीं आने देना चाहता तो मैं कहता हूँ कि ऐसा करनेका उसे अधिकार है। किन्तु यदि कोई ऐसा मन्दिर है जो अब्राह्मणोंके लिए भी खुला है, तो फिर पंचम जाति जैसी कोई चीज नहीं है जिसे कि उस मन्दिरसे बाहर रखा जाये। इस प्रकारके बहिष्कारके लिए तो मुझे हिन्दू शास्त्रोंमें कोई प्रमाण नजर नहीं आता। इसी प्रकार मेरा दावा है कि स्कूलों-जैसे सार्वजनिक स्थान जो कि अन्य वर्गोंके लिए खुले हों, समान रूपसे अछूतोंके लिए भी खुले रहने चाहिए। यही बात कुओं, तालाबों तथा नदी आदि जलाशयोंपर भी लागू होनी चाहिए। उन लोगोंकी ओरसे जो अस्पृश्यता और अनपगम्यताके विरुद्ध संघर्ष में संलग्न हैं, मेरी इतनी ही माँग है।

किन्तु जहाँतक वाइकोमका सम्बन्ध है, मैं स्थितिको थोड़ा और स्पष्ट कर देना चाहता हूँ। वर्तमान सत्याग्रह केवल अछूतोंके उन सड़कोंसे गुजरनेके अधिकारोंकी पुष्टिके लिए किया गया है जिनसे गुजरनेका ईसाइयों, मुसलमानों तथा सवर्ण हिन्दुओंको अधिकार है। सत्याग्रही आज मन्दिर प्रवेशके लिए नहीं लड़ रहे हैं। वे स्कूलोंमें प्रवेशके लिए--मैं नहीं जानता कि त्रावणकोरके स्कूलोंमें प्रवेशपर किसी प्रकारका प्रतिबन्ध है या नहीं--नहीं लड़ रहे हैं। यह बात नहीं कि वे ऐसा करनेका दावा नहीं करते। किन्तु मैं वर्तमान संघर्षका सार आपके सामने रख रहा है। चूँकि सत्याग्रह हृदय परिवर्तन और विश्वासकी प्रणाली है, इसमें जबरदस्तीकी गुंजाइश ही नहीं होती। इसीलिए मैं प्रसन्नतापूर्वक त्रावणकोर विधानसभामें दिये गये दीवान साहबके भाषणमें कही गई बातसे पूरी तरह सहमत हूँ; यदि मुझे ऐसा जान पड़ा है कि वाइकोमके सत्याग्रही, कट्टरपंथी हिन्दुओंपर अनुचित दबाव डालनेके लिए अपन सिद्धान्तके विपरीत हिंसाका उपयोग करते हैं या कोई दूसरा तरीका अपनाते हैं तो आप देखेंगे कि प्रमाण मिलनेपर मैं उन तथाकथित सत्याग्रहियोंसे अपनेको बिलकुल अलग कर लूँगा। किन्तु जबतक सत्याग्रही अपने करारकी शर्तोंके अन्तर्गत बने रहते है तबतक मेरा यह निश्चित कर्तव्य है कि मैं एक अकेले और विनम्र व्यक्तिके रूपमें जो सहायता दे सकता हूँ, उन्हें देता रहूँ। इसलिए मैं अपनी सारी शक्तिके साथ वाइकोमके उन कट्टरपन्थी ब्राह्मणों और अब्राह्मणोंसे जो कि इस संघर्षके विरुद्ध है, अपील करता हूँ कि वे संघर्षका अध्ययन उसके सभी पहलुओंको नजरमें रखकर करें और संघर्षको विवेकदृष्टिसे देखकर यदि उन्हें ऐसा लगे कि यह संघर्ष न्यायसंगत है और वे तरीके जो मानवताके अधिकारोंकी पुष्टिके लिए सत्याग्रहियोंने अपनाये हैं, उचित, अहिंसक और तर्कसंगत हैं तो वे न्याय और मानवताके पक्षमें खड़े हों।


१. देखिए परिशिष्ट १।