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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मुझे इस बातकी ताईद करने में प्रसन्नता होती है कि पुलिस अधिकारियों तथा सत्याग्रहियोंके बीच आम तौरपर अबतक सम्बन्ध अच्छे ही रहे हैं। उन्होंने दिखा दिया है कि सभ्य और सौजन्यपूर्ण लड़ाईको किस प्रकार बिना किसी रोषके, बिना किसी तरहकी कठोर बातें कहे तथा बिना किसी हिंसाके चलाया जा सकता है। मैं जानता हूँ, एकाएक पूर्वग्रहोंपर विजय पाना बड़ा कठिन है। अस्पश्यता एक ऐसी कुप्रथा है जो दीर्घकालसे चली आ रही है। इसीलिए मैंने अपने सत्याग्रही मित्रोंसे कहा है कि उन्हें अत्यन्त धैर्यसे काम लेना होगा। समय हमेशा उनका साथ देता है जो धैर्यसे काम लेते हैं। मेरा खयाल है कि वाइकोमकी जनताकी राय भी उनके ही पक्षमें है। वाइकोमसे बाहरकी जनताकी राय भी उन्हींके पक्षमें है। संसारकी राय उनके पक्षमें बनती जा रही है और इसलिए यदि सत्याग्रही केवल सारे नियमोंका पालन करते हुए सत्याग्रह करते रहे और धीरज खोये बिना चुपचाप कष्ट सहन करते रहे तो निस्सन्देह विजय उन्हींकी होगी। त्रावणकोरकी सरकारने, जहाँतक मुझे दीवान साहबके भाषणसे मालूम होता है, दोनों पक्षोंके प्रति समान दृष्टि रखी है। जब मैंने अपने सत्याग्रही भाइयोंसे यहाँपर यह कहा कि दीवान साहबने जो-कुछ कहा है वह आपत्तिसे परे नहीं है तो उन्होंने सहमति प्रकट की। कुछ भी हो, इसमें सन्देह नहीं कि यदि समाजके दोनों पक्ष आपसमें मिलकर बिना शासकीय हस्तक्षेपके इस प्रश्नका कोई तर्कसंगत तथा सम्मानपूर्ण हल निकाल लें तो यह श्रेयस्कर होगा। दीवान साहबने तो कट्टरपन्थी लोगोंपर अपना मन्तव्य प्रकट कर ही दिया है। उन्होंने उनसे समयके साथ चलने के लिए तथा समयकी भावना पहचाननेके लिए कहा है। मुझे आशा है कि मेरे कट्टरपन्थी मित्र उनकी दी हुई इस समुचित सलाहको सुनेंगे। कुछ भी हो अपनी ओरसे मैं उन्हें पूरा-पूरा विश्वास दिलाता हूँ कि चाहे वे कुछ भी सोचें, चाहे जैसा व्यवहार करें, मेरे प्रस्तावको स्वीकार करें या न करें, मैं तो केवल हिन्दू-धर्मके उस रूपके आदेशानुसार कार्य करूँगा, जिसे मैं जानता हूँ। मैं पृथ्वीतलपर किसीको भी अपना दुश्मन नहीं समझता। इसलिए उनके और अपने बीच मतभेद होनेपर भी मैं उन्हें प्यार करूँगा। मैं हमेशा ईश्वरसे प्रार्थना करता रहूँगा कि वह उन्हें सही दिशामें चलने की प्रेरणा दे, उनके ज्ञान-चक्षु खोले और वे यह समझकर कि भविष्य कहाँ जा रहा है अपने इन पद-दलित देशभाइयोंके साथ न्याय करें। साथ ही मैं ईश्वरसे अत्यन्त दीनतापूर्वक यह प्रार्थना भी करता हूँ कि यदि मैंने हिन्दू शास्त्रोंको गलत पढ़ा है, यदि मैंने मानवताको गलत समझा है और यदि मैंने सत्याग्रहियोंको सलाह देनेमें गलती की हो तो वह मेरी भी आँखें खोले, मुझे अपनी गलती सुझाये और मुझे शक्ति और साहस प्रदान करे ताकि मैं अपनी गलती स्वीकार कर सकूँ और अपने कट्टरपन्थी भाइयोंसे क्षमा याचना कर सकूँ।

एक बात और कहकर मैं अपना भाषण समाप्त करूँगा। जहाँ अस्पृश्यताके प्रश्नपर आपके और मेरे बीच मतभेद है, वहाँ मुझे आशा है कि दूसरे प्रश्नपर जिसका सम्बन्ध देशके गरीबसे-गरीब लोगोंसे है, मतभेद होनेका सवाल ही नहीं उठता। मेरा अर्थ चरखे और खद्दरसे है। देशके गरीब लोगोंके प्रति आपका कर्त्तव्य है कि