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भाषण: वाइकोमके सत्याग्रह आश्रममें

आप चरखेको निष्ठापूर्वक अपनायें और आपका उनके प्रति यह कर्त्तव्य भी है कि आप चरखसे उपलब्ध खद्दरको पहनें और इस तरह अपने देशके गरीबसे-गरी स्त्री-पुरुषोंके हाथमें दो पैसे पहुँचानेकी व्यवस्था करें। जैसा कि मैंने बार-बार कहा है, मैं तबतक सन्तुष्ट नहीं हो सकता जबतक कि राजा और रंक, वाइसराय और उसका अर्दली सिरसे पाँवतक हथकते और हथबुने कपड़े न पहनने लगें।

तीसरी बातके बारेमें मुझे आपसे कहनेकी जरूरत नहीं। वह है हिन्दू-मुस्लिम एकता। इस सम्बन्धमें आपको भारतके शेष भागोंको बहुत-कुछ सिखाना है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि त्रावणकोरमें विभिन्न धर्म और जातियोंके लोग बड़े मेलजोल और सौहार्दके साथ रहते हैं। मैं कह सकता हूँ कि वास्तव में है भी ऐसा ही। मुझे आशा है कि शेष भारत भी इसी प्रशंसनीय भावनाका अनुसरण करेगा जो कि आप लोगोंको प्रेरणा देती है। आपने धैर्यके साथ मेरा भाषण सुना है, उसके लिए मैं आप सबको धन्यवाद देता हूँ। मैं इस आशा और उत्कट प्रार्थनाके साथ अपना भाषण समाप्त करता हूँ कि वाइकोममें जो संघर्ष चल रहा है उसका अन्त केवल उसी प्रकार हो जिसे शोभनीय कहा जाये।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, १६-३-१९२५

१५८. भाषण: वाइकोमके सत्याग्रह आश्रममें

११ मार्च, १९२५

वाइकोममें सत्याग्रह आश्रमके निवासियोंके सामने मैंने जो-कुछ कहा उसे लगभग ज्योंका-त्यों नीचे दिया गया है। आश्रममें इस समय पचाससे ऊपर स्वयंसेवक हैं जो वाइकोम मन्दिरके चार प्रवेश द्वारोंकी रक्षाके लिए बनाई गई बाड़ोंके सामने खड़े रहकर या बैठकर धरना दे रहे हैं। धरना देनेवाली एक-एक टोली वहाँ छः घंटे रहती है और सूत कातती है। दो दल बारी-बारीसे वहाँ भेजे जाते हैं। मैं यह भाषण इस विचारसे यहाँ दे रहा हूँ कि आम लोग इसमें दिलचस्पी लेंगे; समस्त सत्याग्रहियोंसे भी मैं यही आशा रखता हूँ। मो० क० गांधी।

मुझे दुःख है कि मैं आपसे पूरी और सन्तोषजनक ढंगसे बातचीत किये बिना ही आज चला जाऊँगा। लेकिन लगता है कि इससे ज्यादा कुछ करना सम्भव नहीं है। मेरे कार्यक्रमकी व्यवस्था करनेवालोंकी राय है कि उद्देश्यकी सफलताकी दृष्टिसे मुझे वाइकोमके अलावा और भी जगहें देखनी चाहिए। मैंने उनकी सलाह मान ली है, लेकिन अपने विगत अनुभवोंके आधारपर मेरी निश्चित धारणा यही है कि आन्दोलनको सफलता किसी बाहरी सहायताकी अपेक्षा खुद आपपर ही अधिक निर्भर

१. यह "सत्याग्रहियोंका कर्तव्य" शीर्षकसे यंग इंडियामें छपा था।

२. १४-३-१९२५ के हिन्दूके अनुसार।