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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करती है। यदि स्वयं आपमें कुछ शक्ति नहीं है, तो फिर मेरे थोड़ी देरके लिए यहाँ आ जानेसे चाहे कितना ही उत्साह क्यों न पैदा हो जाये वह सब व्यर्थ ही है। और यदि मैं यहाँ न आया होता और जनतामें भी कोई उत्साह न होता, परन्तु यदि आप अपने प्रति सच्चे रहे होते तो किसी बातकी कमी न रहती। इस तरहके उद्देश्यके लिए जितने उत्साहकी जरूरत होती, वह आपके कार्यसे पैदा हो जाता। मैंने यहाँ जितना समय गुजारा है अगर उससे ज्यादा समयतक ठहर सकता तो और भी अच्छा होता। जो भी हो, अपने मित्रोंकी सलाहके विरुद्ध मेरे लिए यहाँ और ठहरना सम्भव नहीं है।

इसलिए कमसे-कम शब्दोंमें मैं आपको बताना चाहता हूँ कि मैं आपसे क्या अपेक्षा रखता हूँ। मैं चाहूँगा कि आप कार्यक्रमके राजनीतिक पहलूको भूल जायें। इस संघर्षके राजनीतिक परिणाम भी हैं, लेकिन उनकी आप कोई चिन्ता न करें। अगर आप उसकी चिन्ता करेंगे तो आप सच्चे फलसे तो हाथ धो ही बैठेंगे, साथ ही राजनीतिक परिणामोंसे भी वंचित रह जायेंगे। और जब संघर्ष अपनी चरम सीमातक पहुँचेगा तब आप उसके अयोग्य सिद्ध होंगे। इसलिए भले ही आपको डर लगे, लेकिन मैं आपके सामने संघर्षका सच्चा स्वरूप रखना चाहता हूँ। यह संघर्ष हिन्दुओंके लिए एक अत्यन्त धार्मिक संघर्ष है। हम हिन्दू धर्मके सबसे बड़े कलंकको मिटानेकी कोशिश कर रहे हैं। जिस पूर्वग्रहके विरुद्ध हमें लड़ना है वह युगों पुराना है। मन्दिरके चारों तरफके रास्ते हमारी रायमें सार्वजनिक रास्ते हैं। इन्हें अन्त्यजोंके लिए खुलवानेका यह संघर्ष तो बड़े युद्धका एक छोटा-सा अंग है। अगर वाइकोममें इन रास्तोंके खुलनेके साथ ही हमारी लड़ाई खतम हो जानेवाली होती तो आप विश्वास रखें कि मैं इसके बारे में चिन्ता न करता। इसलिए अगर आप समझते हों कि वाइकोममें ये रास्ते अन्त्यजोंके लिए खुलनके साथ ही यह लड़ाई खत्म हो तो आप भ्रममें हैं। रास्ता तो खलना ही चाहिए; वह खुलकर ही रहेगा। लेकिन यह तो शुरूआत ही होगी। असली उद्देश्य तो सम्पूर्ण त्रावणकोरमें ऐसे सभी रास्ते अन्त्यजोंके लिए खुलवानेका है। और केवल यही नहीं हम तो यह आशा करते हैं कि हमारी कोशिशोंसे अछूतों और अन्त्यजोंकी सामान्य दशामें भी सुधार होगा। इसके लिए जबरदस्त बलिदानकी जरूरत होगी। कारण, हमारा उद्देश्य विरोधियोंके प्रति कोई भी हिंसात्मक कार्य करके कुछ प्राप्त करना नहीं है। वैसा करना तो हिंसासे या जबर्दस्तीसे मत परिवर्तन कराना होगा, और यदि हम धार्मिक मामलोंमें जबरदस्तीका सहारा लें तो इसमें कोई शक नहीं कि वह आत्मघात होगा। इस संघर्षको हमें पूर्ण अहिंसासे, अर्थात् स्वयं कष्ट सहन करते हुए चलाना है। यही है सत्याग्रहका अर्थ। सवाल यह है कि इस लक्ष्यकी ओर बढ़ते हुए आपपर जो मुसीबतें आयेंगी वे तो आपके भाग्यमें हैं ही; पर क्या आपमें उन सभीको झेलनेकी सामर्थ्य है? कष्ट-सहन करते हुए भी आपके मनमें अपने विरोधियोंके प्रति लेशमात्र भी कटुता नहीं होनी चाहिए। मैं आपको बता देना चाहता हूँ कि यह कोई यन्त्रवत् करने-जैसा काम नहीं है। इसके विपरीत मैं चाहता हूँ कि आप अपने विरोधियोंके प्रति प्रेमका भाव रखें, और