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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कि हम चारों बाड़ों तक जायें और रोके जानेपर वहीं बैठ जायें और कताई करें। यही क्रम रोज चलता रहे। हमें विश्वास करना चाहिए कि इस तरीकेसे वे रास्ते खुल जायेंगे। मैं जानता हूँ कि यह एक कठिन और धीमी प्रक्रिया है। किन्तु यदि आपको सत्याग्रहकी प्रभावकारितामें विश्वास है तो आप इस तिल-तिल होनेवाली यन्त्रणा और कष्ट-सहनमें भी आनन्दका अनुभव करेंगे-- और प्रतिदिन चिलचिलाती धूपमें वहाँ जाकर बैठनमें जो तकलीफ होती है, उसे अनुभव नहीं करेंगे। यदि आपको अपने उद्देश्यमें, अपने साधनमें और ईश्वर में आस्था है तो तपता हुआ सूरज आपके लिए शीतल बन जायेगा। आप थककर यह न कहें कि 'और कबतक', और न कभी झुँझलायें। जिस पापके लिए हिन्दू धर्म उत्तरदायी है, उसके लिए आपके प्रायश्चित्तका यह तो एक छोटा-सा अंश है।

आप लोगोंको मैं इस अभियानमें सिपाहियोंकी तरह मानता हूँ। आप हर चीजपर स्वयं विचार करके निष्कर्षपर नहीं पहुँच सकते। आपको आश्रमकी व्यवस्थामें विश्वास है इसीलिए आप इसमें आये हैं। इसका मतलब यह नहीं कि आपको मुझमें विश्वास है। मैं तो व्यवस्थापक नहीं हूँ। जहाँतक आदर्शों और मोटे-मोटे निर्देशोंका सवाल है, बस उसी हदतक मैं आन्दोलनका संचालन कर रहा हूँ। इसलिए आपका विश्वास उनमें होना चाहिए जो इस समय इसके प्रबन्धक है। आश्रम आनसे पहले पसन्द-नापसन्द करनेका अधिकार आपको था। लेकिन एक बार फैसला करने और आश्रम आ जानेके बाद शंका उठानेका अधिकार आपको नहीं है। अगर हमें एक शक्तिशाली राष्ट्र बनना है तो आपको समय-समयपर जो निर्देश दिये जायें उनका पालन करना चाहिए। यही एक तरीका है जिससे राजनीतिक या धार्मिक जीवनका निर्माण हो सकता है। आपने अपने लिए कुछ सिद्धान्त निर्धारित किये होंगे और उन्हीं सिद्धान्तोंके अधीन होकर आप इस संघर्ष में शामिल हुए होंगे। जो लोग आश्रममें रुके रहते हैं वे भी संघर्ष में उतना ही हिस्सा ले रहे हैं जितना वे जो नाकेबन्दियोंपर जाकर सत्याग्रह करते हैं। संघर्षके सिलसिलेमें किया जानेवाला प्रत्येक काम समान रूपसे महत्वपूर्ण है, और इसलिए आश्रममें सफाई रखनेका काम भी उतना ही जरूरी है जितना कि नाकेबन्दियोंपर जाकर सूत कातनेका। और यदि इस स्थानपर टट्टियों और अहातेकी सफाईका काम कताईकी तुलनामें अधिक अरुचिकर है, तब तो उसे और भी महत्वपूर्ण और हितकर समझना चाहिए। व्यर्थकी बातचीतमें एक क्षण भी बर्बाद नहीं करना चाहिए, बल्कि हमारे सामने जो काम है उसीमें हमें पूरे मनोयोगसे लगे रहना चाहिए; यदि हममें से हरएक इसी सच्ची भावनासे काम करेगा तो आप देखेंगे कि काममें कितना आनन्द मिलता है। आश्रममें हर वस्तुको आप अपनी सम्पत्ति समझें, ऐसी सम्पत्ति न समझें जो इच्छानुसार व्यर्थ ही बर्बाद की जा सकती है। आपको अन्नका एक दाना, कागजका एक टुकड़ा भी बर्बाद नहीं करना चाहिए और इसी प्रकार अपने समयका एक क्षण भी। यह समय हमारा नहीं है। हमारे समयपर राष्ट्रका अधिकार है, और हम राष्ट्रके न्यासियोंके रूपमें उसका उपयोग करें।