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भाषण: वाइकोमके सत्याग्रह आश्रममें

मैं जानता हूँ कि आपको यह सब बहुत दुश्वार मालूम होगा। बातको प्रस्तुत करनेका मेरा तरीका कठोर प्रतीत हो सकता है, लेकिन इसे किसी और ढंगसे प्रस्तुत करना मेरे लिए सम्भव नहीं है। अगर मैं इसे आसान चीज मानकर आपको धोखा दूँ, तो मैं गलत काम करूँगा।

हमारा धर्म बहुत विकृत हो गया है। राष्ट्र के रूपमें हम अकर्मण्य हो गये हैं और समयका महत्त्व भूल गये हैं। हमारे हर कामके पीछे स्वार्थ रहता है। हममें जो बड़ेसे-बड़े लोग हैं उनमें भी परस्पर ईर्ष्याभाव है। हम एक दूसरेके प्रति अनुदार भाव रखते है। जिन चीजोंकी ओर मैंने आपका ध्यान खींचा है, अगर मैं वैसा न करूँ तो इन बुराइयोंसे पिण्ड छुड़ाना हमारे लिए सम्भव नहीं होगा। सत्याग्रह तो सत्यकी अनवरत खोज है, सत्यको खोजनेका दृढ़ संकल्प है। मैं तो केवल आशा ही कर सकता हूँ कि आप जो-कुछ कर रहे हैं, उसका अर्थ समझेंगे। यदि आप उसका अर्थ समझ लेंगे तो आपका रास्ता आसान हो जायेगा--आसान इसलिए कि आप कठिनाइयोंमें भी आनन्दका अनुभव करेंगे और जब हर आदमी निराश होगा उस समय भी आपके मन में आशाका उत्साह बना रहेगा। ऋषियों और कवियोंने धार्मिक पुस्तकोंमें जो दृष्टान्त दिये हैं, मुझे उनपर विश्वास है। उदाहरणार्थ, खौलते तेलमें डुबोये जाते समय सुधन्वाका मुस्कराना एक ऐसी घटना है जिसकी सम्भावनामें मुझे अक्षरशः विश्वास है। कारण, सुधन्वाके लिए उबलते तेलमें डाले जानेसे भी बड़ी यन्त्रणा थी अपने रचयिताको भूलना। और यदि हममें इस आन्दोलनमें सुधन्वाकी-सी आस्थाका एक कण भी हो तो वैसा ही यहाँ भी एक छोटे पैमानेपर हो सकता है।

इसके बाद कार्यकर्त्ताओंने महात्माजीसे बहुतसे प्रश्न किये। श्री टी० आर० कृष्णस्वामी अय्यरने पूछा कि यह संघर्ष कितने दिनोंतक जारी रखा जाना चाहिए। महात्माजीने कहा:

मैं नहीं जानता। यह कुछ दिनोंमें ही समाप्त हो जा सकता है और हमेशा चलता भी रह सकता है। दक्षिण आफ्रिकाका संघर्ष आरम्भ करते समय मैंने सोचा था कि वह एक महीने में समाप्त हो जायेगा, लेकिन वह आठ सालतक जारी रहा।

यह पूछे जानेपर कि बड़े-बड़े जत्थे नाकेबन्दियोंपर क्यों न भेजे जायें, उन्होंने कहा कि इससे उपद्रव और गलतफहमी होगी, और दूसरे इसके लिए हमारे पास काफी आदमी नहीं हैं। मेरी रायमें जनमत तैयार करनेके लिए काफी काम करना चाहिए। आपका दावा है कि जनमत आपके पक्षमें है, जो कुछ हदतक ठीक है। लेकिन अभी जनमत प्रभावशाली नहीं हुआ है। इसके लिए जबर्दस्त संगठनको आवश्यकता, है जो आपके पास नहीं है। मुझे संघर्षको और तेज करनमें कोई लाभ नजर नहीं आता। कार्यकर्त्ताओंको में तीन महीने में हिन्दी, और साथ ही संस्कृत भी सीखने की सलाह देता हूँ। उन्हें ऐसे काममें लगना चाहिए जिससे यह आश्रम आगे चलकर आत्मनिर्भर बन जाये। यदि केरल और त्रावणकोरके बाहर अन्य जगहोंसे

१. इसके बादका अंश हिन्दूसे लिया गया है।