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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चन्दा माँगा गया तो लोग ढीले पड़ जायेंगे। चम्पारनमें मुझे सभी सूत्रोंसे आर्थिक मददके प्रस्ताव आये, लेकिन अपने एक निजी दोस्तके अलावा मैंने और किसीको मदद लेनेसे इनकार कर दिया। इसी प्रकार अहमदाबादमें मजदूरोंकी हड़तालके दौरान मैंने एक व्यक्ति द्वारा हजारों रुपयकी मददके प्रस्तावको अस्वीकार कर दिया था। खेड़ाकी लड़ाईमें मैंने निजी दोस्तोंकी कुछ मदद जरूर स्वीकार की, लेकिन जो धन मिला उसका आधा भी खर्च नहीं हुआ। दक्षिण आफ्रिकामें भी एकत्रित राशिमें से तीन-चार लाख रुपये बच गये थे। मैंने जितनी भी लड़ाइयाँ लड़ी हैं उनमें से एकमें भी प्राप्त रकमसे अधिक खर्च करना पड़ा हो, ऐसा याद नहीं आता। और जो धनराशि हर संघर्षमें मिली वह बिना कठिनाई या दौड़धूपके मिली।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १९-३-१९२५
हिन्दू, १४-३-१९२५

१५९. राष्ट्रीय शिक्षा

एक राष्ट्रीय संस्थाके उपाचार्यने लिखा है:

सरकारी स्कूलोंकी युवा-पोढ़ीमें दासताकी जो मनोवृत्ति पैदा हो जाती है उससे उनको बचाने के लिए इस शताब्दीके प्रथम दशकमें देशमें बड़े पैमानेपर राष्ट्रीय शिक्षाका आन्दोलन आरम्भ किया गया था। उसका उद्देश्य केवल ऐसे स्कूल खोलना था जिनमें 'राष्ट्रीय आधारपर और राष्ट्रीय नियन्त्रणमें' शिक्षा दी जाती हो।...उसके फलस्वरूप कार्यकर्त्ताओंका एक ऐसा दल सामने आया जिसमें से बहुतोंने स्वतन्त्रताके संघर्ष में जोरदार भाग लिया। फिर भी इस बातसे इनकार नहीं किया जा सकता कि विशुद्ध शिक्षा सम्बन्धी आन्दोलनके रूपमें उसका न तो मूल ही पृथक था और न अस्तित्व ही।...

असहयोग आन्दोलनसे राष्ट्रीय शिक्षाके उद्देश्यको दूसरी बार प्रोत्साहन मिला और वह वास्तव में एक जबरदस्त प्रोत्साहन था। देश-भरमें एकाएक सैकड़ों स्कूल खुल गये। उनका उद्देश्य क्षेत्रकी दृष्टि से सीमित था। उनका मुख्य उद्देश्य असहयोगी छात्रोंको केवल एक वर्षतक पढ़ानेकी व्यवस्था करना ही था। लड़कोंको स्वराज्यके सैनिक अर्थात् उन्हें असहयोगके विभिन्न कार्यक्रमोंको चला सकने योग्य बनाना उनका उद्देश्य था। शिक्षा आन्दोलनका राजनैतिक आन्दोलनसे अलग अस्तित्व नहीं था। जब राजनैतिक आन्दोलन कमजोर पड़ा तब शिक्षा आन्दोलन भी अशक्त हो गया।

१. अंशत: उद्धृत।