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१६०. दक्षिण आफ्रिका

दक्षिण आफ्रिकामें स्थिति स्पष्ट रूपसे बिगड़ती जा रही है और उसका अन्त कहाँ होगा, यह नहीं कहा जा सकता। सत्तारूढ़ सरकारने दो अलग-अलग विधेयक प्रस्तुत किये हैं; इन विधेयकोंमें 'एशियाइयों' के विरुद्ध भेद-भाव किया गया है और उनको 'रंगदार' लोगोंके वर्गमें न रखकर 'वतनी' लोगोंके वर्गमें रखा गया है। जो लोग कभी दक्षिण आफ्रिका नहीं गये हैं, उनके लिए यह समझना कठिन है कि इस भेदभावका अर्थ क्या है। समझनेकी बात यह है कि अधिकांश वतनीलोग बिलकुल ही अनपढ़ हैं। दूसरी ओर 'रंगदार' लोग (अर्थात् वे लोग जिनमें थोड़ा-सा भी यूरोपीय खून है) कुल मिलाकर काफी साक्षर लोग हैं। ऐसा लगता है कि नई सरकारकी नीति, जिसके कर्णधार जनरल स्मट्स और हर्टजोग हैं, 'एशियाइयों' को और भी अधिक दबानेको और 'रंगदार' लोगोंका दर्जा ऊँचा करने की है।

एक और विधयक भी बनाया जानेवाला है। इसके अनुसार दक्षिण आफ्रिकाकी नागरिकता केवल उन विशुद्ध गोरे लोगोंतक ही सीमित रहेगी जो दक्षिण आफ्रिकामें पैदा हुए हैं और वहीं पले-पुसे हैं। जो अंग्रेज इंग्लैंडसे सीधा आयेगा वह इंग्लैंडमें जन्म लेने और वहाँका मूल निवासी होनके आधार पर दक्षिण आफ्रिकाकी नागरिकताका अधिकार नहीं माँग सकेगा। उसको दक्षिण आफ्रिकाको नागरिकता प्राप्त करने के लिए प्रमाणपत्र लेने पड़ेंगे। दक्षिण आफ्रिकाके प्रमुख समाचारपत्रोंका यह कहना है कि मजदूर दल (जो अंग्रेज मजदूरोंके मतोंपर निर्भर है) और राष्ट्रवादी दल (जो मुख्यतः डचोंके मतोंपर निर्भर है) के बीच इस मान्यताके आधारपर समझौता हो गया है कि राष्ट्रवादी एक जबर्दस्त एशियाई-विरोधी मजदूर नीतिका समर्थन करेंगे बशर्ते कि मजदूर दलके सदस्य उनकी जबर्दस्त "बर्गर" (नागरिकता सम्बन्धी) नीतिका समर्थन करनेको तैयार हों।

इसके अतिरिक्त हमें यह खबर भी मिली है कि पृथक्करण सम्बन्धी एक नये विधेयकका मसविदा जो पिछले 'वर्गक्षेत्र विधयक' से भी ज्यादा कड़ा होगा, तैयार किया जा रहा है। पाठकोंको स्मरण होगा कि नेटालके जिस नगरपालिका मताधिकार अधिनियमसे भविष्यमें भारतीयोंको नगरपालिका मताधिकारसे वंचित रखा गया है, वह अधिनियम अब पारित हो गया है और उसपर गवर्नर जनरलने स्वीकृति दे दी है। यदि जातिभेद मूलक पृथक्करण अधिनियम भी पारित कर दिया गया तो यह जानना कठिन है कि हमारे