पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/३०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२७५
सन्तति नियमन

अब मैं देखता हूँ कि कुछ हिन्दी पत्रोंमें कृत्रिम साधनोंका वर्णन ऐसे भद्दे तथा कुरुचिपूर्ण ढंगसे और खुले तौरपर किया गया है कि उसे पढ़कर शिष्टताकी भावनाको आघात पहुँचता है। और मैं यह भी देखता हूँ कि एक लेखकने तो सन्तति-नियमनके लिए कृत्रिम साधनोंके समर्थकोंकी सूचीमें मेरा नाम सम्मिलित करने में संकोच नहीं किया है। मुझे एक भी ऐसा मौका याद नहीं पड़ता जबकि मैंने कृत्रिम साधनोंके उपयोगके पक्षमें कोई बात कही या लिखी हो। मैंने यह भी देखा है कि दो और प्रसिद्ध पुरुषोंके नाम इसके समर्थकोंमें दिये गये हैं। उनसे पूछे बिना मुझे उनका नाम प्रकट करने में संकोच हो रहा है।

सन्तति-नियमनकी आवश्यकताके बारे में तो दो मत हो ही नहीं सकते, परन्तु इसका एक ही उपाय है आत्म-संयम या ब्रह्मचर्य, जो कि हमारी युगोंकी विरासत है। यह रामबाण और सर्वोपरि उपाय है और जो उसका पालन करते हैं उन्हें लाभ ही लाभ होता है। डाक्टर लोगोंका मानव-जातिपर बड़ा उपकार होगा, यदि वे सन्तति-नियमनके लिए कृत्रिम साधनोंकी शोध करनेकी जगह आत्मसंयमके साधनोंकी खोज करें। स्त्री-पुरुषके मिलापका हेतु आनन्द भोग नहीं बल्कि सन्तानोत्पत्ति है। जब सन्तानोत्पत्तिकी इच्छा न हो तब संभोग करना अपराध है।

कृत्रिम साधनोंकी सलाह देना मानो दुराचारको बढ़ावा देना है। उससे पुरुष और स्त्री उच्छृंखल हो जाते हैं। और इन कृत्रिम साधनोंको जो मान्यता दी जा रही है उससे तो उस संयमके बन्धन समाप्त हो जायेंगे जो लोकमतके कारण मनुष्य अपनेपर रखता है। कृत्रिम साधनोंके अवलम्बनका कुफल होगा पौरुषहीनता और क्लीवता। यह दवा मर्जसे भी ज्यादा बदतर साबित होगी। किये गये कर्मके फलोंको भोगनेसे बचनेकी कोशिश करना अनुचित है, अनीतिपूर्ण है। जो शख्स जरूरतसे ज्यादा खा लेता है उसके लिए यह अच्छा है कि उसके पेटमें दर्द हो और फिर उसे लंघन करना पड़े। रसनाको वशमें न रखकर खूब डटकर खा लेना और बादको पाचक दवाइयोंका सेवन करके उसके नतीजोंसे बचना अहितकर है। विषय-भोगमें रत रहना और फिर अपने इस कृत्यके परिणामोंसे बचना इससे भी बुरा है। प्रकृति बड़ी कठोर शासिका है। वह इस प्रकारके नियमोल्लंघनोंका बदला पूरी तरह चुकाती है। नैतिक संयमके द्वारा ही हमें नैतिक फल मिल सकता है। दूसरे तमाम प्रकारके संयम-साधन अपने हेतुके ही विनाशक सिद्ध होंगे। कृत्रिम साधनोंके समर्थनके मूल में यह युक्ति या धारणा रहती है कि भोग-विलास जीवनकी एक आवश्यक चीज है। इससे बढ़कर कोई दूसरा भ्रम हो ही नहीं सकता। अतएव जो लोग सन्तति-नियमनके लिए उत्सुक है, उन्हें चाहिए कि वे प्राचीन लोगोंके बताये हुए उचित उपायोंकी खोज करें, और इस बातकी कोशिश करें कि उनको किस तरह पुनर्जीवित किया जाये। उनके सामने बुनियादी काम प्रचुर मात्रामें मौजूद है। बाल-विवाह जनसंख्याकी वृद्धिमें सहायक होते हैं। अबाध प्रजननकी बुराईका बहुत-कुछ सम्बन्ध हमारी वर्तमान जीवन-पद्धति है। यदि इन कारणोंकी छानबीन की जाय और उनको दूर करनेका उपाय भी किया जाये तो समाज नैतिक दृष्टिसे बहुत ऊँचा उठ जायगा। परन्तु यदि हमारे इन जल्दबाज और अति उत्साही लोगोंने उनकी ओर ध्यान न दिया और यदि कृत्रिम साधनोंका