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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

संगसारी 'कुरान' में नहीं है।

मैं नीचे डाक्टर मुहम्मद अली, सदर अहमदिया अंजुमन इशआते इस्लामका भेजा तार बड़ी खुशीके साथ प्रकाशित कर रहा हूँ:

कैसे भी गुनाहके लिए कुरानशरीफमें संगसारीकी इजाजत नहीं है। आपकी टिप्पणीसे इस्लाम और नबीके साथ अन्याय होता है और उससे इस्लामके खिलाफ दुनियामें जबरदस्त गलतफहमी पैदा होनेका अन्देशा है। मुझे यकीन है कि आपने यह राय सोच-विचार कर कायम नहीं की है; बल्कि इसे आपने यों ही लोगोंसे सुनकर लिख दिया है। इस विषयपर 'कुरान' के मेरे अंग्रेजी तरजुमेको आप देखेंगे तो आपको यकीन हो जायेगा कि जिन्होंने आपको यह खबर दी है वे गलतीपर हैं। इसलिए आपसे यह प्रार्थना है कि आप इसपर विचार करें और इस गलतफहमीको दूर कर दें।

डा० मुहम्मद अली मेरी टीकाको ठीक-ठीक नहीं समझ सके हैं। मैं यह जानता था कि कुछ लोग किन्हीं खास हालतोंमें 'संगसारी' की सजाको, 'कुरान' में लिखी हई समझकर, ठीक मानते हैं। मैंने इस बातपर कि 'कुरान' या 'हदीस' में ऐसी सजा लिखी है या नहीं या यह प्रथा बहत अर्सेसे चली आ रही है, अपनी जाहिर नहीं की है; मैंने तो सिर्फ इतना ही कहा था कि यदि 'कुरान' में ऐसी सजा लिखी भी हो, तो भी उसका समर्थन नहीं किया जा सकता। मुझे बड़ी खुशी है कि डा० मुहम्मद अली मुझे इस बातका यकीन दिलाते हैं कि 'कुरान' में संगसारी के लिए इजाजत नहीं दी गई है। मैं यह जानना चाहता हूँ कि काबुल में किस आधारपर उसका समर्थन किया गया और हिन्दुस्तानमें मुसलमानोंके एक वर्गने किस आधारपर उसे ठीक माना। मैं यह भी चाहता हूँ कि सब मुसलमान एक स्वरसे संगसारीकी सजाकी निन्दा करें। यदि ऐसा हो सका तो फिर इस्लामी दुनियामें ऐसी सजाका दुबारा कहीं भी दिया जाना नामुमकिन हो जायेगा।

एक खत

एक प्रसिद्ध भारतीय सार्वजनिक कार्यकर्त्ताने एक सुविख्यात अंग्रेजको मुलाकातके लिए एक पत्र लिखा था। उस अंग्रेजने जो जवाब दिया था वह नीचे दिया जाता है:

आपका पत्र मिला। मुझे अफसोस है; मैं आपसे नहीं मिल सकूँगा। इसका कारण सिर्फ यही है कि मेरी रायमें भारतीय प्रश्नकी आज जो स्थिति है उसको देखते हुए, आपका मुझसे मिलना फायदेमन्द नहीं होगा। मैं भारतीय नेताओंके कामों और उनके इरादोंको न तो समझ पाता हूँ और न उनके प्रति मेरी कोई सहानुभूति हो सकती है। आप लोगोंको जिस जातिके लोगोंसे वास्ता पड़ा है उसके स्वभावको थोड़ा-बहुत तो अवश्य जान लेना चाहिए। ब्रिटिश सरकारने आपको बहुत-कुछ दिया है। न्यायकी भावनासे जो-कुछ आपको दिया गया है क्या उसका आप पूरा-पूरा उपयोग नहीं कर सकते? मुमकिन है