पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/३०९

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आप मताधिकारकी शक्तिको सुव्यवस्थित करके, योग्य लोगोंका चुनाव करके और उनमें जो सर्वोत्कृष्ट हैं उनके कार्योंकी समालोचना करके, क्रमशः यह साबित कर सकें कि आप नागरिकताकी जबरदस्त और गम्भीर जवाबदेहीका निर्वाह कर सकते हैं और अपने महत्त्वपूर्ण कर्त्तव्योंका पालन कर सकते हैं। मुझे यकीन है कि राजनीतिक सामर्थ्यका यह प्रमाण मिलनेपर मेरे समर्थतम देशवासी आपके भावी राजनीतिक विकासकी दिशामें आपका साथ देंगे और आपको उनकी सक्रिय सहानुभूति भी प्राप्त होगी। यदि आपका विश्वास अंग्रेजी राजनीतिक दलोंके साथ सौदा करने में हो तो उसका नतीजा निराशाजनक ही होगा।

मेरी समझमें नहीं आ रहा है कि लेखककी इस उद्धततापर अफसोस करें या अपने विचारोंके प्रति उसकी दृढ़ताकी सराहना। उसने तो अपने मनमें यह मान ही लिया है कि मुलाकात करनेवाले सज्जनसे उसे जानना कुछ भी नहीं है। उसे तो केवल देना ही देना है। ऐसे अंग्रेजको कौन सन्तुष्ट कर सकता है जो अपनेको चारों तरफसे बन्द रखता है और यह समझनेसे इनकार करता है कि बहस करनेकी प्रबलसे-प्रबल शक्तिका सम्पादन करने-भरसे हम नागरिकताकी गम्भीर जवाबदेही निभानेके काबिल नहीं हो सकते। ऐसे अंग्रेजको यह कौन समझाये कि नागरिकताकी जवाबदेही निभाने के लिए पहले आत्म-रक्षा करनेकी ताकतका होना आवश्यक है और वह ताकत वादविवादमें निष्णात होनेकी कला जाननेसे हासिल नहीं हो सकती। उसे यह कौन बताये कि खुद उसकी जातिने भी अपने देशकी रक्षा करनेकी ताकतको बढ़ा कर ही स्वराज्यकी कला प्राप्त की है और अंग्रेजोंकी बहस करनेकी वर्तमान क्षमता स्वराज्य मिल चुकनेके बाद ही प्राप्त हई है। इस लेखक और उसके हम-खयालोंको यह कौन समझाय कि हम भारतीय यह नहीं मानते कि न्यायकी भावनासे हमें बहुत-कुछ दिया जा चुका है। बल्कि हम मानते हैं कि हमें जो-कुछ दिया गया है वह बहुत ही कम है और वह भी दिया गया है परिस्थितियोंके दवावके कारण। अन्तमें उनके मनमें यह बात कौन बैठा सकेगा कि हम लोग अंग्रेजोंके "राजनीतिक दलोंकी आपसी सोदेबाजी" में नहीं, अपनी ताकतपर ही विश्वास रखते हैं। अंग्रेजोंका ऐसा अज्ञान और उनका जानबूझकर अलग रहनेका रवैया बड़े ही दुःखका विषय है। इस पत्रसे हमें एक सबक भी मिलता है। जिन्हें हम जानते नहीं हैं उनके साथ मुलाकात करनेका प्रयत्न करके हमें अपना अपमान नहीं कराना चाहिए। सारी दुनियाके साथ हमारे सम्बन्धोंका क्या रूप होगा, यह हमारे अपने व्यवहारपर निर्भर है।

एक कार्यकर्त्ता को कैदकी सजा

मुझे कोचीनसे एक तार मिला है, जिसमें बताया गया है कि श्री कुरुर नम्बूद्रीपादको दो महीनेकी सादी कैदको सजा दी गई है। यह सजा किस कारण दी गई है यह मैं नहीं जानता। श्री नम्बूद्रीपाद एक मंजे हुए सैनिक और निष्ठावान् कार्यकर्त्ता हैं। मैं उनको इस कैदकी सजापर बधाई देता हूँ। मेरी रायमें जो