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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

व्यक्ति सेवा करते हुए और बिना किसी नैतिक अपराधके कैदकी सजा पाता है वह भी देशकी सेवा करता है।

मैं राजनीतिज्ञ?

एक अंग्रेज मित्रने श्री एन्ड्रयूजको एक पत्र भेजा है जिसे उन्होंने जवाब देनेके लिए मेरे पास भेज दिया है। उनकी समस्या यह है:

हाल ही के एक लेखमें श्री गांधीने सवर्णों और अछूतोंके बीच विवाहका विरोध किया है; उसे पढ़कर मुझे आश्चर्य हुआ। इस सवालको तो मैं एक कसौटी मानता हूँ। जिस प्रकार मैं उनसे यह नहीं कहूँगा कि वे इस बातका समर्थन करें कि अमुक व्यक्तिको अमुक व्यक्तिसे विवाह करना चाहिए उसी प्रकार मैं उनसे यह उम्मीद नहीं करूँगा कि वे यह कहें कि इस जाति और उस जातिके बीच विवाह-सम्बन्ध होना चाहिए। परन्तु यह तो निश्चित है कि जहाँ स्त्री-पुरुष समान विचारके होते हैं वहीं उत्तम दाम्पत्य सम्बन्ध पाय जाते हैं और सन्तान उत्तम होती है। क्या भारतमें श्री गांधीका यही लक्ष्य नहीं है? और जिस हदतक वे इस लक्ष्यको प्राप्त करेंगे उसी हदतक क्या भिन्न-भिन्न जातियों में अन्तर्विवाह वैसे ही सहज न हो जायेंगे जैसे एफिसस में यहूदियों और यूनानियोंके बीच?

मैं जानता हूँ कि गांधी एक राजनीतिज्ञ हैं और मैं समझ सकता हूँ कि उन्होंने यह बात लोगोंकी नाराजगीसे बचने के लिए लिख दी होगी। लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि राजनीतिक दृष्टिसे महत्त्वपूर्ण होनेपर भी उनके इस वक्तव्यसे उनके प्रधान लक्ष्यको हानि पहुँचे बिना न रहेगी। यदि ब्राह्मण लोग भंगियोंको, महज जातिकी बिनापर, बराबरीके अधिकार देनसे इनकार करें तो केनियाके यूरोपीय किसानोंसे यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि वे वहाँ हिन्दुस्तानी दुकानदारोंसे समुचित व्यवहार करेंगे?

मैंने जाति-भेद और अन्तर्विवाहके सम्बन्धमें अपने विचार अनेक बार व्यक्त किये हैं। मेरे नजदीक विवाह पति-पत्नीतककी पारस्परिक सौहार्दकी आवश्यक कसौटी नहीं है, फिर उनकी जातिकी तो बात ही क्या? मैं ऐसे किसी कालकी कल्पना नहीं कर सकता जब कि सारी मनुष्य-जातिका धर्म एक ही हो जायेगा। ऐसी अवस्थामें आम तौरपर धार्मिक भेद रहेंगे ही। लोग अपने अपने-धर्ममें विवाह करेंगे। उसी तरह क्षेत्रीय प्रतिबन्ध भी रहेंगे। जातीय प्रतिबन्ध उसी सिद्धान्तका व्यापक रूप है। यह एक प्रकारको सामाजिक सुविधा है। किसी अभिजात कुलवाले अंग्रेज व्यक्तिका पुत्र आम तौरपर किसी पंसारीकी लड़कीसे शादी नहीं करता। आम तौरपर कुलकी बातको सोचकर ही वह ऐसी लड़कीसे सम्बन्ध नहीं करेगा। मैं अस्पृश्यताके खिलाफ इसलिए हूँ कि उसके कारण सेवाका क्षेत्र संकुचित हो जाता है। विवाह कोई सेवाकार्य नहीं है। वह तो एक ऐसा सुख-साधन है जिसे स्त्री या पुरुष अपने लिए चाहते