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हैं। इसलिए यदि सुखका साथी चुननेका क्षेत्र सीमित कर दिया जाता है या विवाह जैसे महत्त्वपर्ण जीवन परिवर्तनके लिए सोच-समझकर चुनाव किया जाता है तो मुझे इसमें कोई हानि नहीं दिखाई देती। अगर केनियाका कोई बाशिन्दा मेरा केनियामें रहना केवल इसी बिनापर बरदाश्त नहीं कर सकता कि मैं अपनी लड़कीकी शादी उसके साथ नहीं करता या उसकी लड़कीका पाणिग्रहण अपने लड़केके साथ नहीं होने देता, तो मुझे उसके लिए खेद होगा, पर मजबूर होकर ऐसे अनमेल या अनुपयुक्त रिश्ते करनेके बजाय मैं केनियासे निकाल दिये जानेमें अधिक सन्तोष मानूँगा। मैं तो यह भी कहूँगा कि केनियावासी तो मुझे ऐसी बात सोचने भी न देगा। और यदि मैं ऐसा कोई दावा पेश भी करता हूँ तो वह मुझे वहाँसे हटाये जानेका एक और कारण बन जायेगा। यद्यपि यह विषय मेरी दृष्टिमें बहुत साफ है और सारी दुनियामें विवाह सम्बन्ध करनेके लिए जाति, वर्ण आदिकी मर्यादाओंका पालन होता है, तथापि सम्भव है कि श्री एन्ड्र्यूजके मित्रको मेरे उत्तरसे सन्तोष न हो। पर मैं उन्हें यह आश्वासन दे सकता हूँ कि मैंने किसीकी नाराजगीके खयालसे सवालको टाला नहीं है राजनीतिज्ञ शब्दका प्रयोग जिस संकुचित अर्थमें किया है उस अर्थमें मैं राजनीतिज्ञ नहीं। मैंने वही बात लिखी है, जिसे मैं मानता हूँ। मैंने किसी राजनीतिक लाभके लिए सिद्धान्तको नहीं छोड़ा है। यदि मैं अन्तर्विवाहपर लगाये हिन्दू धर्मके संयम-विधानको न मानूँ तो शायद मैं उन लोगोंमें अधिक लोकप्रियता प्राप्त कर लूँगा जिनसे मैं मिलता-जुलता हूँ। और मेरा मुख्य लक्ष्य क्या है? मनुष्य-मात्रके साथ समान व्यवहार। और समान व्यवहारका अर्थ है समान सेवा। सेवा करनेके अधिकारसे किसीको वंचित नहीं रखा जा सकता। विवाह-सम्बन्धमें गुण-शीलकी समानता होनी चाहिए। यदि कोई स्त्री किसी लाल बालवाले पुरुषसे विवाह करनेसे इनकार कर दे तो यह कोई गुनाह न होगा, पर अगर वह उसके लाल बालोंके कारण उसकी सेवा करने के अपने कर्त्तव्यकी अवहेलना करेगी तो वह पापकी भागिनी होगी। विवाह अपनी रुचिका विषय है। सेवा एक कर्त्तव्य है जिससे हम बच नहीं सकते।

एक क्रान्तिकारी

मुझे अंदेशा है कि आपकी इस सलाहका पालन करना कि मैं सार्वजनिक जीवनसे हट जाऊँ, आसान नहीं है। ऐसी सलाह देना आसान हो सकता है! मेरा दावा है कि मैं भारतका और उसके माध्यमसे सारी मानव-जातिका सेवक हूँ। हमेशा जैसा चाहूँ वैसा नहीं हो सकता। अगर मौसम कभी मेरे अनुकूल रहा है तो मुझे प्रतिकूलताका भी मुकाबला करना चाहिए। जबतक मुझे लगता है कि अभी मेरी जरूरत है तबतक मुझे मैदान नहीं छोड़ना चाहिए। जब मेरा काम खतम हो जायेगा और मैं एक असमर्थ या थका-हारा सिपाही रह जाऊँगा तब लोग मुझे अलग कर देंगे। तबतक मुझे अपना काम करते रहना है और क्रान्तिकारी हलचलोंके विषाक्त असरको खतम करनेके लिए जो कुछ भी सम्भव है उसे करना है। उस समय जब कि रोगीको अंगूरका ताजा रस पिलानेकी जरूरत है यदि कोई डाक्टर उसे संखियाकी भस्म खिलाता है तो फिर उसका उद्देश्य चाहे कितना ही अच्छा क्यों न हो और वह