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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कितना ही आत्मत्यागी क्यों न हो, वह दूरसे ही नमस्कार कर लेनके योग्य है। मेरा क्रान्तिकारियोंसे कहना है कि वे अपने हाथों आत्मघात न करें और अनिच्छुक लोगोंको अपने साथ न घसीटें। यूरोपका रास्ता हिन्दुस्तानका रास्ता नहीं हो सकता। हिन्दुस्तान कलकत्ता या बम्बईमें नहीं है। हिन्दुस्तान तो अपने सात लाख गाँवोंमें बसा हआ है। यदि क्रान्तिकारियोंकी संख्या बहुत है तो वे इन गांवोंमें फैल जायें और अपने देशकी लाखों अन्धेरी झोंपड़ियोंमें कुछ उजाला पहुँचायें। अंग्रेज अधिकारियों तथा उनके अन्य सहायक लोगोंके खूनके प्यासे बने रहनेकी अपेक्षा ऐसा करना उनकी महत्वाकांक्षा और देश-प्रेमके अधिक अनुरूप होगा। अधिकारियोंको मार डालनेकी अपेक्षा उनके मनोभावको बदलनेकी कोशिश करना कहीं अच्छा है।

हिन्दुओंकी ज्यादती

एक मुसलमान संवाददाताने, निजी सम्पत्तिपर कथित मस्जिद बनानेके सम्बन्धमें लिखे गये मेरे लेखपर नरम शब्दोंमें मेरी भर्त्सना की है और हिन्दुओंकी कथित ज्यादतियोंके कई उदाहरण दिये हैं किन्तु उनके सम्बन्धमें उसने कोई प्रमाण पेश नहीं किये हैं। अपने एक आरोपके समर्थनमें उसने कुछ तथ्य अवश्य दिये हैं। मैंने उससे कहा है कि वह अपने दूसरे आरोपोंको भी सिद्ध करे। मैंने वचन दिया है कि यदि वे उनके प्रमाण देंगे तो मैं उन्हें पूराका-पूरा छाप दूँगा और मामलेकी पूछताछ भी करूँगा। फिलहाल मैं नीचे उस एक आरोपको देता हूँ जो संवाददाताने सप्रमाण लगाया है:

लोहानीके मुसलमान एक पुरानी कच्ची मस्जिदकी जगह एक पक्की मस्जिद बनाना चाहते हैं। बलशाली हिन्दू मुसलमानोंको अपने इस अधिकारका प्रयोग नहीं करने देते। हमारे ये भाई अपने देशवासियोंके न्याय्य अधिकारोंके विरुद्ध उसी बहिष्कार-अस्त्रका प्रयोग कर रहे हैं जिसका प्रयोग उन्हें विदेशी आक्रमणकारीके विरुद्ध करना सिखाया गया है। वहाँ नमाज और अजान बिलकुल बन्द है।

यदि लोहानीके हिन्दुओंने, उनपर जो-कुछ करनेका आरोप लगाया गया है वह काम किया है तो निश्चय ही उन्होंने ज्यादती की है। मेरा उनसे अनुरोध है कि वे अपना कथन प्रकाशनके लिए भेजें और यदि उनके विरुद्ध लगाये गये आरोप ठीक हों तो मेरा उनसे कहना है कि वे अपनी भूल तुरन्त सुधार लें। न्यायकी माँग करनेवालोंको खुद निर्दोष रहना चाहिए।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १२-३-१९२५