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१६४. केनियाके मैदान

मैं अभी हालमें दिल्ली गया था। वहाँसे लौटकर मुझे लगा कि किसीको जरा भी गलतफहमी न हो, इसलिए मुझे यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि केनियाके मैदानोंके जिस क्षेत्रमें भारतीयोंको बसानेके लिए बड़े पैमानेपर सरकारी जमीन मुफ्त देनका प्रस्ताव है उस क्षेत्रके सम्बन्धमें जाँच करनके लिए सरकारी तौरपर भारतसे किसीको भेजे जानेपर मुझे प्रबल आपत्ति है।

पहली बात तो यह है कि ऐसे प्रस्तावको अस्थायी रूपसे भी मानना या उसको माननेके खयालसे उसपर विचार भी करना समस्त भारतीय स्थितिको हास्यास्पद बनाना है, क्योंकि भारतीयोंकी माँग यह नहीं है कि उन्हें किसी दूसरी जगह सरकारी जमीन मुफ्त दी जायें; उनकी माँग तो यह है कि उनको वचन दिये जानेके बावजूद, केनियाके पहाड़ी प्रदेशोंमें जमीन खरीदने और बेचनेका जो कानूनी अधिकार अवैध रूपसे उनसे छीन लिया गया है वह उन्हें फिर वापस दे दिया जाये। भारतीय नागरिकताके प्राथमिक अधिकारकी माँग कर रहे हैं। उनकी माँग यही है कि कानूनकी निगाहमें उन्हें दूसरे नागरिकोंके साथ बराबरीका दर्जा दिया जाये। इसलिए यह आसानीसे समझा जा सकता है कि यदि भारतीय केनियाके मैदानों में मुफ्त जमीन पाने के प्रस्तावपर विचारतक करेंगे तो इससे निश्चित रूपसे यही समझा जायेगा कि उन्होंने अन्यत्र अपने कानूनी अधिकार एकदम छोड़ दिये हैं। मैं समझता हूँ कि मैंने यह बात बिलकुल साफ कर दी है कि मैदानोंमें किसी क्षेत्रकी जाँच करने के लिए किसी भारतीय अधिकारीके भेजे जानेका अर्थ यही होगा कि भारतीयोंने केनियाके पहाड़ी प्रदेशोंमें अपने कानूनी अधिकार बिलकुल छोड़ दिये हैं।

दूसरी बात यह है कि केनियाके पहाड़ी प्रदेशोंमें गोरोंने वतनियोंकी १२,००० वर्गमील उपजाऊ जमीन तो ले ही ली है; और अब इसके सिवा यदि भारतीय इन मैदानोंके एक बड़े क्षेत्रको अंग्रेजी सैनिक शक्तिकी सहायतासे कब्जेमें लें और वतनियोंको इस नये प्रदेशसे भी वंचित करें तो यह अन्याय होगा। इस तरह भारत पहली बार वह कदम उठायेगा जिसका अर्थ होगा सम्भव दिखनेपर जमीन हड़पनेकी साम्राज्यवादी नीतिपर अमल करने के लिए उसका तैयार होना। यह कहने की जरूरत नहीं है कि आफ्रिकाके वतनी, जहाँतक उन्हें अपनी बात कहनेका अधिकार है, भारतीयों द्वारा जमीन हड़पनेकी ऐसी किसी नीतिके विरुद्ध अत्यन्त प्रबल आपत्ति करेंगे। यदि उन्हें अपनी बात कहनेका

१. सी० एफ० एन्ड्रयज द्वारा लिखित।