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भाषण: क्विलोनमें

करके खुद ऊँचे नहीं बने रह सकते। यह बात अकल्पनीय लगती है कि किसी मनुष्यके लिए अर्द्ध-सार्वजनिक या सार्वजनिक सड़कोंका उपयोग करना निषिद्ध कर दिया जाय। जबसे मैंने त्रावणकोरमें कदम रखा है तबसे मैं इस प्रकारके निषेधके पक्षमें जितने तर्क दिये जा सकते हैं, उन सभी तर्कोको धैर्य और नम्रताके साथ सुनता रहा हूँ, लेकिन मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि मैं उनसे जरा भी प्रभावित नहीं हुआ हूँ--इसलिए नहीं कि मैं दूसरेकी बात समझनेके लिए तैयार नहीं है बल्कि इसलिए कि कट्टरपन्थी लोगों द्वारा जो विरोध किया जा रहा है, वह मूलतः गलत है।

मैंने उनके सामने तीन निश्चित प्रस्ताव रखे हैं। इस समय मैं उनकी चर्चा नहीं करूँगा, लेकिन आप सबसे जो यहाँ इकट्ठा हुए हैं, मेरा निवेदन है कि आप मुझे तथा इस अनुष्ठानको अपनी सक्रिय सहानुभूति और सहयोग प्रदान करें। (हर्षध्वनि) हिन्दू धर्म में जो बुराई घुस गई है, यदि आप उसे हृदयसे स्वीकार करते हैं तो मैं इस नगरके प्रत्येक स्त्री और पुरुषसे सहयोग और सहानुभूति देनेका अनुरोध करूँगा। कृपया याद रखें कि इस समय दुनियाके सभी धर्मोंमें अव्यवस्था और गड़बड़ी फैली हुई है। अब वे केवल अपने धर्म-ग्रन्थोंके प्रमाणोंके सहारे ही नहीं खड़े रह सकते। उन्हें अब तर्क और बुद्धिकी कड़ीसे-कड़ी परीक्षा पास करनी होगी। मैं सनातनी हिन्दू होनेका दावा करता हूँ, फिर भी मैने जो बात कई मौकोंपर पहले कही है उसे फिर दोहराने में मुझे हिचक नहीं है, और वह यह है कि यदि 'वेदों' या 'पुराणों' में मुझे ऐसी चीजें दिखाई पड़ें जो बुद्धिकी कसौटीपर खरी न उतरें तो उन्हें अस्वीकार करनेमें मैं कोई आगा-पीछा नहीं करूँगा। लेकिन अपने सीमित समय और सीमित ज्ञानके अनुसार मैं स्वयं जितनी खोज कर सका हूँ, और भारतके बड़ेसेबड़े विद्वान् शास्त्रियोंसे मुझे जितनी कुछ सहायता मिली है, उसके आधारपर मेरी यह दृढ़ धारणा बन गई है कि इस समय भारतमें अनुपगम्यता अथवा अस्पृश्यता जिस रूपमें प्रचलित हैं, उनके लिए शास्त्रोंमें कोई भी प्रमाण नहीं मिलता। यह देश ज्ञानका भण्डार है और यदि आप मेरे कथनका खण्डन करना चाहते हों तो मैं आपसे कहूँगा कि मेरी सहायता कीजिए और मझे वे श्लोक दिखाइये जो आपकी रायमें कट्टरपन्थियोंके मतका समर्थन करते हैं। मैं आपको चेतावनी देता हूँ कि यदि आप समय रहते नहीं चेते--यह बात मैं यहाँ उपस्थित हिन्दू श्रोताओंसे कह रहा हूँ--तो हमारे धर्मके सर्वनाशका भय है।

इस सुधारके बारेमें मुझसे धीरज रखनेको कहा जाता है। मैं अनुभवसे जानता हूँ कि धीरज एक गुण है। मैंने पिछले ४० वर्षोंसे अपने विनम्र ढंगसे बहुत प्रयासपूर्वक इस गुणको अपने भीतर पैदा किया है, लेकिन मैं आपके सामने स्वीकार करता हूँ कि मैं हिन्दू धर्मको कलंकित करनेवाले इस अभिशापके प्रति धीरज नहीं रख सकता। मैं तो आपसे कहूँगा कि आप इस अभिशापके प्रति अधैर्यको एक गुण समझें। मेरे शब्दोंपर ध्यान दीजिए। मैं कट्टरपन्थियोंके प्रति अधैर्यको बरतनेको नहीं कहता; मेरा आपसे अनुरोध है कि आप अपने प्रति अधीरता बरतें। देशको इस अभिशापसे जबतक मुक्त न कर लें, चैनसे न बैठें। अगर आप हलचल करें और अपनी रायको जोरदार ढंगसे व्यक्त करें तो अन्धी कट्टरताका विरोध छिन्न-भिन्न हो जायेगा।