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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सत्याग्रह अपनी रायकी जोरदार अभिव्यक्तिके सिवा कुछ नहीं है। और जरूरत बातोंपर जोर देनेकी नहीं है, कार्योंपर जोर देनेकी है; और कार्योंपर जोर देनेका मतलब है स्वयं कष्ट सहन करना। मैं चाहता हूँ कि आप इस कसौटीपर वाइकोममें चल रहे संघर्षको जाँचें और यदि आपको वहाँ सत्याग्रहियोंमें हिंसाका लेश भी नजर आये तो आप उनकी कटुतम शब्दोंमें निन्दा करें। किन्तु यदि आप पायें कि वाइकोमकी कट्टरपन्थी विचारधाराकी अवहेलना करनेवाले वे लोग ईमानदार हैं और वे कष्टोंको सत्याग्रहियोंकी भाँति सहन कर रहे हैं, यदि आप देखें कि इन लोगोंके बारेमें मैं जो-कुछ आपको बता रहा हूँ वह सच है, तो मैं आपसे इनका समर्थन करनेका अनुरोध करता हूँ।

सत्याग्रहने अब एक चिरन्तन् शक्तिका रूप ले लिया है। संसारकी कोई भी शक्ति उसका विनाश नहीं कर सकती। सत्याग्रह एक अमूल्य निधि है। वह सत्याग्रही और जिसके विरुद्ध सत्याग्रह किया जाये, दोनोंका ही कल्याण करता है। इससे किसीको डरनेकी जरूरत नहीं है और मैं चाहूँगा कि यहाँ रहनेवाले आप शिक्षित लोग सत्याग्रह और उसके समूचे फलाफलका अध्ययन करें; तब आप मुझसे सहमत होंगे कि सत्याग्रहको यदि ठीकसे समझा जाये और ठीकसे प्रयोगमें लाया जाये तो यह एक लाजवाब तरीका है।

त्रावणकोरके दीवानके मानपत्रमें चरखका उल्लेख देखकर मुझे बहुत हर्ष हुआ। आप लोगोंने अपनी विधान सभामें एक प्रस्ताव पास किया है जिसके द्वारा राष्टीय स्कूलोंमें चरखेको अपनानेकी सिफारिश की गई है। मैं विधान सभाको इस प्रस्तावके लिए बधाई देता हूँ, लेकिन त्रावणकोरके नगरों और कस्बोंकी यात्रा कर चुकनेके बाद मुझे अब आपसे यह कहना ही पड़ेगा कि आपके स्कूलोंमें चरखेकी योजनाकी सफलताके बारेमें मुझे शक है। अगर मुझे ठीक याद है तो दीवान महोदयने एक कुशल कतैयके लिए विज्ञापन निकलवाया है। मुझे त्रावणकोरमें एक भी कुशल कतैया मिलनेमें शक है। और अगर आपके पास पर्याप्त संख्या में कुशल कतैये नहीं है तो मैं नहीं जानता कि आप अपने स्कूलोंके लिए कताई-शिक्षक कहाँसे लायेंगे। लेकिन मैं आपसे कहूँगा कि जब आपने प्रस्ताव पास कर दिया है तो उसे अब सफल बनाइए। आप विश्वास करें कि यदि भारतको दिनोंदिन बढ़ती गरीबीकी समस्याको कोई चीज हल कर सकती है तो वह केवल चरखा ही है। समूचे भारतके कृषक वर्गके लिए किसी एक सहायक धन्धेकी जरूरत है। ऐसा सहायक धन्धा केवल चरखेसे ही मिल सकता है। यह कोई नई चीज नहीं है। आजसे सिर्फ सौ साल पहले भारतकी हर कुटियामें चरखा रहता था। चरखेको उसका पुराना स्थान देते ही आप देखेंगे कि आपने गरीबीकी समस्या हल कर ली है।

मेरे मनमें त्रावणकोरकी स्त्रियोंके प्रति ममता उत्पन्न हो गई है। उन्हें तन ढँकनेके लिए उतने लम्बे वस्त्रकी जरूरत नहीं पड़ती जितनी तमिलनाडुकी स्त्रियोंको पड़ती है। मुझे यह देखकर खुशी हुई है कि त्रावणकोरकी स्त्रियाँ अपना तन ढाँक लेने में ही पर्याप्त श्रृंगार मानती हैं। उनका श्वेत परिधान मुझे बहुत प्रिय जान पड़ता है। मुझे आशा और विश्वास है कि यह श्वेत परिधान उनकी आन्तरिक पवित्रताका