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सम्पूर्ण गांधी वाड़्मय

कहकर "राधा-कृष्ण" कहते हैं। सुग्गेको भी यही पढ़ाया जाता है। हम सीताका नाम पहले लेते हैं, इसका कारण यह है कि पवित्र स्त्रियाँ न हों, तो पवित्र पुरुषोंका होना असम्भव है। बालक माता जैसे ही बनेंगे, पिता जैसे नहीं। माताके हाथमें बालककी बागडोर होती है। पिताका कार्यक्षेत्र बाहर है, इसीलिए मैं सदा कहता आया हूँ कि जबतक सार्वजनिक जीवनमें भारतकी स्त्रियाँ भाग नहीं लेतीं, तबतक हिन्दुस्तानका उद्धार नहीं हो सकता। सार्वजनिक जीवनमें वही भाग ले सकेंगी जो तन और मनसे पवित्र हैं। जिनके तन और मन एक ही दिशामें---पवित्र दिशामें चलते जा रहे हों, जबतक एसी स्त्रियाँ हिन्दुस्तानके सार्वजनिक जीवनको पवित्र न करें, तबतक रामराज्य अथवा स्वराज्य असम्भव है। अथवा स्वराज्य सम्भव हो, तो वह ऐसा स्वराज्य होगा, जिसमें स्त्रियोंका पूरा-पूरा भाग नहीं रहेगा। और जिस स्वराज्यमें स्त्रियोंका पूरा-पूरा भाग न हो, वह मेरे लेखे निकम्मा स्वराज्य है। पवित्र मन और हृदय रखनेवाली स्त्री सदा साष्टांग नमस्कार करने योग्य है। मैं चाहता हूँ कि ऐसी स्त्रियाँ सार्वजनिक जीवनमें भाग लें।

हम किसे ऐसी स्त्री कहें? कहा जाता है कि सतीका तेज चेहरेसे प्रकट हो जाता है। कोई कह सकता है कि भारतमें जितनी वेश्याएँ हैं, क्या उन सबको भी सती मानें, क्योंकि वे तो चेहरेको तेजवन्त रखनेका व्यवसाय ही करती हैं। नहीं, बात ऐसी नहीं है। मुख्य बात तो हृदयकी पवित्रता है। जिसका मन और हृदय पवित्र है, वह सती सदैव पूज्य है। हम जैसे भीतर होते हैं, बाहर भी वैसे ही प्रकट होते हैं। यही प्रकृतिका नियम है। यदि हम भीतरसे मलिन हों, तो बाहर भी वैसे ही दिखाई देंगे। दृष्टि और वाणी, ये बाह्य चिह्न हैं किन्तु जाननेवाला गुण-अवगुणकी पहचान इन बाह्य चिह्नोंसे भी कर लेता है।

तब फिर पवित्रताका क्या अर्थ है? इसका क्या लक्षण है? मैं खादीको पवित्रताकी निशानी समझता हूँ, किन्तु यदि मैं यह कहूँ कि जो खादी पहनता है, वह पवित्र हो जाता है, तो इसे मानना ठीक नहीं हो सकता।

मैं कहता हूँ कि सार्वजनिक जीवनमें हाथ बटाओ। इसका भी क्या अर्थ है? सार्वजनिक जीवनमें भाग लेनेका अर्थ सभा-मण्डलोंमें जाकर उपस्थित हो जाना नहीं है, बल्कि यह है कि लोग पवित्रताके चिह्नस्वरूप खादी पहनकर हिन्दुस्तानके स्त्री-पुरुषोंकी सेवा करें। यदि हम राजा-महाराजाओंकी सेवा करें, तो उससे क्या होगा? यदि हम वहाँ जायें, तो सम्भव है कि दरबान ही महाराजा साहबके पास न जाने दे। किसी धनिक व्यक्तिकी सेवा करनेकी इच्छाका भी ऐसा ही फल हो सकता है। हिन्दुस्तानकी सेवाका अर्थ है गरीबोंकी सेवा। ईश्वर अदृश्य है, इसलिए यदि हम दृश्यकी सेवा करें तो पर्याप्त है। दृश्य ईश्वरकी सेवाका अर्थ है गरीबोंकी सेवा और यही हमारे सार्वजनिक जीवनका अर्थ है। यदि हमें जनताकी सेवा करनी हो तो भगवानका नाम लेकर हमें गरीबोंके बीचमें जाकर चरखा चलाना चाहिए।

सार्वजनिक जीवनमें हाथ बँटानेका अर्थ गरीब बहनोंकी सेवा करना है। इन बहनोंकी हालत बहुत दयनीय है। गंगाके उस तीरपर जहाँ जनक राजा हुए और सीताजी हुईं, अपनी पत्नीके साथ मेरी इनसे मुलाकात हुई। बड़ी ही दयाजनक