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भाषण: वर्कलामें

आन्तरिक बलके आगे नहीं टिक सकेगी जो आप अपनेमें पैदा कर लेंगे। हिन्दुस्तानभरमें ऐसे लोगोंके असंख्य उदाहरण हैं जो दलितवर्गके थे लेकिन जिन्होंने अपनेको कुछ बनाकर दिखाया; यही नहीं वे बड़ेसे-बड़े ब्राह्मणोंसे सम्मानित हुए। मैं चाहता हूँ कि इन विशिष्ट व्यक्तियोंने आपसे पहले जो-कुछ कर दिखाया है आप उससे पीछे न रहें। मैं आपसे कहूँगा कि आप अपनेको हिन्दू धर्मके कल्याणका न्यासी समझें। मैं जानता हूँ कि इस समय त्रावणकोरमें ही नहीं, सारे हिन्दुस्तानके दलितवर्गोंमें बेचैनीकी एक लहर दौड़ रही है। मैं निश्चयपूर्वक कह सकता हूँ कि इस प्रकार अधीर होना अनुचित है। आप धैर्य खोकर कोई स्थायी सुधार नहीं कर सकते। अधीर ही होना है तो हमें अन्यायीके विरुद्ध नहीं, अपने प्रति अधीर होना चाहिए। अंग्रेजोंका हमारे प्रति जो रवैया है, उसके बारेमें भी मैंने भारतके सामने यही उपाय रखा है, और मैं आपके प्रति कट्टरपन्थियोंके रवैयेके खिलाफ भी कोई दूसरा उपाय नहीं सुझा सकता। वे हममें जो-जो बुराइयाँ गिनाते हैं यदि हम उन सबको समाप्त कर दें तो आप देखेंगे कि रूढ़िवादिताके पाँवोंके नीचेकी जमीन खिसक जायेगी। आप पूछ सकते हैं, और ऐसा पूछना ठीक ही होगा कि एक सार्वजनिक सड़कपर प्रवेशके सवालसे गुण और चरित्रका क्या सम्बन्ध है। लेकिन मैं आपसे कहूँगा कि आप इस विषयपर जरा गहराईसे विचार करें। कट्टरपन्थियोंके दिमागमें कुछ खास-खास सार्वजनिक सड़कोंके इस्तेमालका सवाल धर्मसे बुरी तरह जुड़ा हुआ है।

कट्टरपन्थियोंने जो स्थिति अपनाई है वह गलत, भ्रान्तिपूर्ण, अनैतिक और पापमय है। लेकिन यह मेरा और आपका दृष्टिकोण है--कट्टरपन्थियोंका नहीं। एक समय था जब हमारे पूर्वज मानव-बलि चढ़ाया करते थे। हम जानते हैं कि यह राक्षसी कृत्य था, अधर्म था, लेकिन हमारे पूर्वज ऐसा नहीं मानते थे। उन्हें यह ठीक ही लगता था और उन्होंने इस दुर्गुणको गुण मान रखा था। अगर हम उन्हें आजके मापदण्डसे नापें तो यह उनके साथ घोर अन्याय होगा। अगर हम उनके साथ न्याय करना चाहते है, तो हमें अपनेको उनकी स्थितिमें रखकर यह देखना होगा कि मानवबलि देनेकी प्रथा समाप्त होनेपर उन्हें कितनी चोट लगी थी। यह बात उनके पिछले कृत्योंको न्याय नहीं ठहराती। यह एक वस्तुस्थिति है कि वे इन कामोंको सर्वथा ठीक समझते थे और उनका इसके अतिरिक्त कुछ न समझ सकना ऐसी बात है जो हमारे पूर्वजोंके पक्षमें जाती है। मैं चाहता हूँ कि आप आजके धर्मान्ध कट्टरपन्थियोंको भी इसी दृष्टिसे देखें। उन्हें अपनी ही बात निर्दोष लगती है, मैं यह बात कटु अनुभवसे कह रहा हूँ। मैं यह बात अपने घरेलू-जीवनके अनुभवसे कह रहा हूँ। मैं अपनी प्रिय पत्नीके चारों ओर पूर्वग्रहोंकी खड़ी हुई दीवारको अभीतक हटा नहीं पाया हूँ, लेकिन मैं उसके प्रति अधीर भी नहीं होता। उसके प्रति ज्यादासे-ज्यादा लिहाज, ज्यादासे-ज्यादा सौजन्य, और यदि अधिक स्नेह सम्भव हो तो अधिक स्नेहके बलपर उसे अपने विचारोंसे सहमत करना मैं अपना कर्त्तव्य मानता हूँ। अपने निजी आचरणके प्रति मैं पूरी पूरी कठोरता बरतता हूँ, मुझे जहाँ अपने अन्दर पैठी हुई छोटीसे-छोटी अन्याय भावनाको भी सहन नहीं करना चाहिए वहाँ मुझे अपनी पत्नीके प्रति उदार होना