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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चाहिए। आप भी मुझसे किसी दूसरे व्यवहारकी अपेक्षा नहीं करेंगे। इसी प्रकार मैं आपसे अपेक्षा करता हूँ कि आप कट्टरपन्थियोंके प्रति अन्यथा भाव नहीं रखेंगे। यही सच्चे धर्ममय जीवनका रहस्य है। स्वामीजीने कल मुझसे कहा कि धर्म एक है। मैंने इस विचारका विरोध किया और आज यहाँ भी मैं उसका विरोध कर रहा हूँ। जबतक अलग-अलग मनुष्य हैं तबतक भिन्न-भिन्न धर्म रहेंगे, लेकिन सच्चे धार्मिक जीवनका रहस्य एक-दूसरेके धर्मके प्रति सहिष्णुता बरतनेमें है। कुछ धार्मिक प्रथाओंमें जो चीज हमें बुरी लग सकती है वह उस प्रथाको माननेवालोंको भी बुरी लगे, यह जरूरी नहीं है। मैं वर्तमान मतभेदोंकी तरफसे आँख बन्द नहीं करना चाहता, ऐसा करनेका साहस भी नहीं कर सकता। मैं चाहूँ तो भी उन भेदोंको मिटा नहीं सकता, लेकिन उन भेदोंको जानते हुए, मैं उन लोगोंसे भी प्रेम करूँगा जो मुझसे भिन्न मत रखते हैं। आप इस नियमको सारी दुनियामें देख सकते हैं। हम जिस पेड़की छायामें बैठे हैं, उसकी कोई भी दो पत्तियाँ एक समान नहीं हैं, हालाँकि वे एक ही मूलसे उत्पन्न हुई हैं, लेकिन जिस प्रकार पत्तियाँ आपसमें पूरी तरह हिलमिल कर रहती हैं और कुल मिलाकर सघन वृक्षके रूपमें एक सुन्दर दृश्य प्रस्तुत करती हैं, उसी प्रकार हमारा मानव-समाज अपनी समस्त विभिन्नताओंके साथ देखनेवालेको एक सुन्दर समष्टिके रूपमें दिखना चाहिए। यह तभी हो सकता है जब अपनी भिन्नताओंके बावजूद हम एक-दूसरेके प्रति प्रेम रखना और परस्पर सहिष्णुता बरतना शुरू करें। अतः यद्यपि मैं विवेकशून्य कट्टरवादितामें निपट जड़तापूर्ण अज्ञान देखता हूँ, फिर भी उस कट्टरताके प्रति असहिष्णु नहीं बनता; इसीलिए मैंने दुनियाके सामने अहिंसाका सिद्धान्त प्रस्तुत किया है। मैं कहता हूँ कि जो व्यक्ति इस धरतीपर धार्मिक जीवन व्यतीत करना चाहता है और जो इसी जन्ममें इस पृथ्वीपर आत्मज्ञान प्राप्त करना चाहता है उसे हर रूपमें, हर प्रकारसे और अपने हर कृत्यमें अहिंसक रहना चाहिए। मैं आपसे यहाँ यह कहने आया हूँ कि यदि वाइकोमका यह सत्याग्रह पूरी तरह अहिंसात्मक भावनासे चलाया गया होता और यदि उसे आपसे जो समर्थन मिलना चाहिए वह मिला होता तो लड़ाई कबकी बन्द हो गई होती। मैंने वाइकोमके सत्याग्रहियोंकी तारीफ की है। उन्होंने बहुत अच्छा काम किया है। वे मेरी प्रशंसाके पात्र हैं, लेकिन यह तसवीरका एक ही पहलू है। अगर मैं आपके सामने दूसरा पहलू न रखूँ तो आपके साथ अप्रामाणिकता होगी। लेकिन यह दूसरा पहलू रखते हुए भी अहिंसाके सिद्धान्तके अनुसार मुझे उनकी निन्दा नहीं करनी है। जितना उनसे हो सकता था उन्होंने जरूर किया है, लेकिन मैं उनसे और आपसे और भी अच्छा काम कर दिखानेको कहता हूँ। उन्होंने किसीपर प्रहार नहीं किया, लेकिन उनके विचार और उनके मनमें हिंसाकी भावना थी। उनसे बातचीतके दौरान भी मैंने यह बात देखी। अस्पृश्यताका विरोध करनेवाले कट्टरपन्थियोंके प्रति उनके मनोंमें बड़ी कटुता है। वे उनसे क्रुद्ध हैं और उनकी नीयतपर शक करते हैं। वे सरकारकी नीयतपर भी शक करते हैं। मेरा कहना है कि ये सारी चीजें सत्याग्रहकी मर्यादाके विपरीत हैं। मैं सरकारके वचनपर भरोसा करूँगा। कट्टरपन्थी यदि यह कहते हैं