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भाषण: वर्कलामें

कि जब मैं उनकी सड़कपरसे गुजरता हूँ तो इससे उनकी धार्मिक भावनाको चोट पहुँचती है तो मैं उनकी इस बातका विश्वास करता हूँ, और जिस ईमानदारीका दावा मैं स्वयं करता हूँ उसी ईमानदारीका श्रेय उन्हें देकर मैं उनके सन्देह और उनके विरोधको समाप्त कर देता हूँ। अपनेको उनके आदरका पात्र बनाकर मैं स्थितिको अपने लिए बहुत अनुकूल बना सकता हूँ। और इस प्रकार मैं आशा कर सकता हूँ कि मैं उनके विवेकको जगा सकूँगा। मैं चाहता हूँ कि आप भी मानसिक रूपसे यही रुख अपनाएँ; क्योंकि मेरा विश्वास है कि विचार कर्मकी अपेक्षा कहीं अधिक शक्तिशाली होते हैं। हमारे कर्म हमारे विचारोंकी अधूरी-सी प्रतिकृति होते हैं, और किसी कार्यका विश्लेषण करके उसकी जड़तक पहुँचने में मनोविज्ञानके जानकारोंको कोई कठिनाई नहीं होती, और न यह खोज निकालने में ही कठिनाई होती है कि अमुक व्यक्ति कितना नेक और वीर है, लेकिन फिर भी कितनी बार वह नीचताके काम कर डालता है।

मेरा उद्देश्य आज इन मुख्य सिद्धान्तोंको फिरसे दोहरा देना है कि हम अपनी मुक्ति स्वयं प्राप्त करनी चाहिए, हमें स्वावलम्बी बनना चाहिए, हमें डटकर उद्योग करना चाहिए। मैं आपसे कहता हूँ कि आपके सामने जो भी दूसरे काम हों उन्हें आप एक तरफ रख दें और इस सत्याग्रहको सफलताके साथ पूरा करनेके लिए प्रयत्नशील हों। यह संघर्ष आपकी कसौटी है, इसपर पूरा उतरनेका यही तरीका है कि आप इन वीर सत्याग्रहियोंके दलकी जरूरतोंको हर मानेमें पूरा करें। आपको इस प्रान्तसे बाहरके, बल्कि हो सके तो वाइकोमके बाहरके किसी आदमीसे या मुझसे पैसा लेनमें लज्जा आनी चाहिए। आपको सत्याग्रहियोंके लिए पैसेका इन्तजाम तो करना ही चाहिए बल्कि आपको इस अनुष्ठानमें भी पूरी लगनसे लग जाना चाहिए। ध्यान रखें कि सत्याग्रहियोंकी टोलियाँ आती रहें। कुछ थोड़ेसे नौजवान, बहादुर लड़के, दिनप्रतिदिन नाकेबन्दियोंके सामने तेज धपमें बैठकर सूत कातते रहें, आपको इतने ही से सन्तुष्ट नहीं होना चाहिए, बल्कि आपको इस अनुष्ठानमें हिस्सा लेकर कष्ट सहन करना चाहिए, आपको भी इस कड़ी धूपमें धरना देकर तपश्चर्या करनी चाहिए, और इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि चूँकि त्याग और बलिदान पवित्र गुण है, आपको यह काम पवित्र मनसे करना चाहिए। इसलिए आपका चरित्र सन्देहसे परे होना चाहिए, और आपको सत्यवादी और आत्मसंयमी बनना चाहिए। कमसे-कम सत्याग्रहके दौरान आपको भोग विलाससे दूर रहना चाहिए, और अपनी आवश्यकताएँ न्यूनातिन्यून कर देनी चाहिए। कुछ दिनोंके लिए आपको किसी सांसारिक बन्धनमें नहीं पड़ना चाहिए। आप अपने बुजुर्गोंकी आज्ञा लेकर फिर घर-द्वारकी ओर मुँह भी न करें। उनसे कह दें कि एक बार जब आप सत्याग्रहके लिए घरसे निकल पड़े है तो जरूरत होनेपर भी वे आपकी सहायताकी अपेक्षा न करें। आप यह सब काम सच्चे मनसे कीजिए और फिर आप देखेंगे कि आपने अपने लिए वह स्थान प्राप्त कर लिया है जिसे दुनियाकी कोई ताकत आपसे छीन नहीं सकती। ऐसा विशेष कार्य करनेका सौभाग्य तो सभीको नहीं मिल सकता; लेकिन अपने समाजमें सामाजिक सुधारका काम सभी कर सकते हैं। आपको अपने बीचसे अस्पृश्यता समाप्त