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भाषण: महाराजा कालेज, त्रिवेन्द्रममें

जिस धैर्यके साथ मेरी बात सुनी है उसके लिए आपको एक बार फिर धन्यवाद देता हूँ, लेकिन आप मुझे सबसे बड़ा पुरस्कार यही दे सकते हैं कि आपने जो-कुछ सुना है, उसे आप कर दिखायें। (जोरसे हर्षध्वनि)।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, १६-३-१९२५

१७०. भाषण: महाराजा कालेज, त्रिवेन्द्रममें

१३ मार्च, १९२५

भारतमें और जैसा कि मुझे यूरोप और अमेरिकासे प्राप्त होनेवाले पत्रोंसे विदित होता है, भारतके बाहर तो और भी अधिक व्यापक रूपसे यह भ्रममूलक धारणा फैली हुई है कि मैं विज्ञानका विरोधी हूँ; उसका शत्रु हूँ। इस तरहके आरोपसे अधिक मिथ्या कोई अन्य आरोप हो ही नहीं सकता। यह बिलकुल सच है कि जो बात मैं आपसे अभी कहनेवाला हूँ, अगर विज्ञानके साथ वह बात न हो तो मैं उस तरहके विज्ञानका प्रशंसक नहीं हूँ। मेरी रायमें अगर हम विज्ञानका उचित उपयोग करें तो विज्ञान हमारे लिए संजीवनी बूटी है। किन्तु संसारमें अपने भ्रमणके दौरान मैंने विज्ञानका इतना दुरुपयोग होते देखा है कि प्रायः कई बार मुझे ऐसी बातें कहनी पड़ी हैं या मैंने कही हैं जिनसे लोग सोच सकते हैं कि मैं विज्ञानका विरोधी हूँ। मेरी नम्र रायमें वैज्ञानिक शोधकी भी सीमाएँ हैं और वैज्ञानिक शोधकी जो सीमाएँ मैं मानता हूँ, वे मानवताके विचारसे मानता हूँ। अभी हाल हीमें मैं एक मित्रके साथ विज्ञानके उपयोगोंके बारेमें चर्चा कर रहा था। उस समय मैंने अपने जीवनका एक किस्सा उनको सुनाया। आपको भी सुनाता हूँ। उनसे मैंने कहा कि मेरे जीवनमें एक ऐसा समय भी आया था कि जब मैंने करीब-करीब डाक्टरी पढ़नेका निश्चय कर लिया था। और मैंने उन्हें यह भी बताया कि अगर मैंने डाक्टरी पढ़ी होती तो शायद मैं एक विख्यात चिकित्सक या विख्यात सर्जन, या दोनों ही हो गया होता। कारण मैं वास्तवमें डाक्टरीकी इन दोनों शाखाओंका प्रेमी हूँ, और मुझे लगता है कि मैं डाक्टरके रूपमें बहुत सेवा कर सकता था। लेकिन जब मेरे एक डाक्टर दोस्तने बताया--और वह एक अच्छे डाक्टर थे--कि मुझे चीर-फाड़ करनी पड़ेगी, तब मेरा मन घृणासे भर गया और उस तरफसे बिलकुल हट गया।

शायद आपमें से कुछ लोग मेरी इस बातपर हँसें; लेकिन मैं चाहता हूँ कि मैं जो कह रहा हूँ उसपर आप हँसे नहीं बल्कि ध्यानसे विचार करें। मुझे लगता है कि हम पृथ्वीपर इसलिए जन्मे हैं कि हम अपने स्रष्टाकी आराधना करें, अपनेको पहचानें, दूसरे शब्दोंमें आत्मानुभूति करें और इस तरह अपने प्रारब्धको जानें। मेरी

१. यह भाषण महाराजा कालेज ऑफ साइंसके विद्यार्थियों द्वारा भेंट किये गये अभिनन्दन-पत्रके उत्तरमें दिया गया था।