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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रायमें चीर-फाड़ हमारे नैतिक उत्थानमें रत्ती-भर भी सहायक नहीं होता। चीरफाड़से उस व्यक्तिको जिसके शरीरमें कोई कष्ट है, शायद कुछ राहत मिल सकती है। हालाँकि कई डाक्टरोंने मुझे बताया है कि यह बात भी पूर्ण रूपसे सही नहीं है। लेकिन मैं आपसे यह बात सच्चे दिलसे कहना चाहता हूँ कि मैं शरीरको जीवित रखने के उपायोंपर प्रतिबन्ध लगाने में विश्वास करता हूँ। शरीरका क्या भरोसा? वह क्षण-भंगुर है। और किसी भी समय छूट जा सकता है। कर्नल मैडॉकके कुशल हाथों द्वारा किये गये उस ऑपरेशनसे तो चंगा होकर मैं निकल आया; लेकिन मेरे अच्छे हो जानेके बाद इस बातकी कोई गारंटी नहीं थी कि बिजली गिर जानेसे या किसी दुर्घटनामें पड़कर मेरी मृत्यु नहीं हो जायेगी। ऐसी स्थितिमें मैं समझता हूँ कि हमें इस बातका पता लगाना चाहिए कि हमारे लिए उचित क्या है--संयम रखना अथवा कोई बन्धन न मानना।

वैज्ञानिक अनुसन्धान और विज्ञानके उपयोगोंके ऊपर मैं जो सीमाएँ लगाना चाहूँगा, यह तो उसका मैंने केवल एक उदाहरण ही दिया है। इसलिए मैं सिर्फ इतना ही कहूँगा--जैसा कि मैंने भारतके बहुत सारे छात्रोंसें कहा है, और चूँकि मुझे छात्र-जगतका विश्वास प्राप्त होने और भारत-भरमें हजारों-लाखों छात्रोंके सम्पर्कमें आनेका सौभाग्य प्राप्त है, इसलिए मैं उनसे कहने में संकोच नहीं करूँगा--कि उन्हें जीवन में कमसे-कम एक चीजके बारेमें निश्चित होना चाहिए, अर्थात् इस बारेमें कि वे इस दुनियामें किसलिए आये हैं। मैं यही विचार पूरी नम्रताके साथ प्रोफेसरों और शिक्षकोंके सामने भी रखता हूँ, और यही कारण है कि मैंने आधुनिक सभ्यताकी --मैं पश्चिमी सभ्यता नहीं कहूँगा, हालाँकि वर्तमान स्थितिमें ये दोनों एक-दूसरेके पर्यायवाची बन गये हैं--भौतिकवादी प्रकृतिके बारेमें और उसके विरुद्ध अक्सर लिखा और कहा है। लेकिन एक दूसरा पहलू भी है जो मैं आपके सामने रखना चाहूँगा। बहुत-से छात्र ज्ञानार्जनके लिए विज्ञान नहीं पढ़ते बल्कि विज्ञान पढ़कर नौकरी मिलेगी; इसलिए पढ़ते हैं। यह बात विज्ञानकी शिक्षा लेनेवाले कालेजोंके छात्रोंके बारेमें ही नहीं, बल्कि सभी कालेजोंके छात्रोंके बारेमें सच है। लेकिन यह देखते हुए कि विज्ञान उन कुछ चीजोंमें से है जिसमें विचार और प्रयोगकी यथार्थतापर आग्रह रखना होता है, मैं आपको जो चेतावनी देना चाहता हूँ वह औरोंकी अपेक्षा आप ज्यादा अच्छी तरह समझ सकेंगे।

मैं चाहूँगा कि हमारे अपने देशमें जो दो महान् वैज्ञानिक हुए हैं, उन्हे आप सामने रखें। ये दोनों हैं डाक्टर जगदीश चन्द्र बोस तथा डाक्टर प्रफुल्लचन्द्र राय। कम-से-कम विज्ञानके छात्रोंके लिए तो ये जाने-माने नाम हैं। मेरा विश्वास है कि समस्त शिक्षित भारतके लिए ये नाम सुपरिचित हैं। इन दोनोंने 'विज्ञानके लिए विज्ञान' का उद्देश्य निश्चित किया, और हम जानते हैं कि उनकी क्या उपलब्धियाँ है। उन्होंने यह कभी नहीं सोचा कि विज्ञान पढ़कर उन्हें धन या यशके रूपमें क्या मिलेगा। उन्होंने विज्ञानके ही लिए विज्ञानका अध्ययन किया। सर जगदीशचन्द्र बोसने एक बार मुझे बताया था कि विज्ञानके प्रति हमारा दृष्टिकोण क्या हो। उस सिल-