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भाषण: महाराजा कालेज, त्रिवेन्द्रममें

सिले में मैंने जब कुछ नहीं कहा था, उससे बहुत पहले ही उन्होंने अपनी हदतक विज्ञानकी सीमाएँ स्वीकार कर ली थीं। मैं उनके ही कथनके आधारपर कह रहा हैं कि उनकी तमाम वैज्ञानिक खोजका उद्देश्य यही रहा है कि उसके सहारे हम अपने स्रष्टाके और निकट पहुँच सकें।

लेकिन भारतमें छात्रोंके सामने एक भारी समस्या है। इस तरहकी शिक्षा या उच्चतर शिक्षा पानेवाले छात्र मध्यवर्गके परिवारोंसे आते हैं। यह हमारा और हमारे देशका दुर्भाग्य है कि मध्यवर्गके लोग अपने हाथका इस्तेमाल करना लगभग भूल चुके हैं। और मैं मानता हूँ कि अगर कोई लड़का अपनी आस्तीन चढ़ाकर सड़कपर काम करनेवाले किसी मामली मजदूरकी तरह परिश्रम नहीं कर सकता तो उस लड़केके लिए विज्ञानके रहस्योंको या वैज्ञानिक क्रिया-कलापोंसे प्राप्त होनेवाले आनन्दको समझना असम्भव है।

जब मैं रसायनशास्त्र पढ़ता था उस समयकी मुझे अच्छी तरह याद है। मुझे वह सबसे नीरस विषय लगता था (हँसी)। अब मैं जानता हूँ कि यह कितना दिलचस्प विषय है। हालाँकि मैं अपने सभी शिक्षकोंका भक्त हूँ, लेकिन मैं कहना चाहता हूँ कि इसमें गलती मेरी नहीं थी, मेरे शिक्षककी थी। उन्होंने मुझसे बड़े-बड़े और विकट लगनेवाले नाम जबानी याद करनेको कहा--जबकि मुझे यह भी नहीं मालूम था कि उनके मतलब क्या हैं। विभिन्न धातुएँ भी उन्होंने मुझे कभी नहीं दिखाईं। मुझे बस हर चीज जबानी याद करनी पड़ी। वे अपने सावधानीसे लिखे गये बड़े-बड़े नोट्स लाते थे और हमारे सामने पढ़ देते थे। हमें उनको लिख लेना और याद करना होता था। मैंने इसका विरोध किया और उसी एक विषयमें फेल हो गया (हँसी)। और स्थिति यह हुई कि वे तो शायद मैट्रिकुलेशन परीक्षामें बैठनेके लिए मुझे प्रमाणपत्र भी न देते। भाग्यवश मैं उस समय बीमार था; उन्हें मुझपर दया आ गई और उन्होंने प्रमाणपत्र दे दिया। अगर ऐसा न होता तो वे रसायनशास्त्रके पर्चेमें पास न होनेके लिए अपनेको दोष न देकर वास्तवमें मुझे दोष देते और मुझे परीक्षामें बैठनेसे रोक लेते।

अतः प्रोफेसर और शिक्षक--श्रीमान्, मैं आपको और आपकी जातिको इनमें शामिल नहीं करता--भारतीय शिक्षक और प्रोफेसर तथा छात्र सभी एक ही नावपर सवार हैं। विज्ञान मूलत: उन चीजोंमें से है जिसमें जबतक आपको व्यावहारिक ज्ञान न हो और आप उसका व्यावहारिक प्रयोग न करें, केवल सिद्धान्तका कोई महत्त्व नहीं है। मैं नहीं जानता कि आप लोग किस हदतक व्यावहारिक प्रयोग करते हैं और उसमें किस हदतक आनन्द लेते हैं। अगर आप सही भावनासे विज्ञान पढ़ते हैं तो मेरी रायमें हमारे विचार और कामको सटीक बनानेमें इससे अधिक महत्त्वपूर्ण व सहायक और कोई वस्तु नहीं है। जबतक हमारे दिमाग और हमारे हाथ मिलकर साथ-साथ नहीं चलेंगे तबतक हम कुछ भी नहीं कर सकेंगे।

दुर्भाग्यवश, हम कालेजोंमें पढ़नेवाले लोग भूल जाते हैं कि असली भारत गांवोंमें है, नगरोंमें नहीं।