पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/३२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२९८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भारतमें ७,००,००० गाँव हैं, और उदार शिक्षा प्राप्त करनेवाले आप-जैसे लोगोंसे अपेक्षा की जाती है कि आप इस शिक्षाको, या इस शिक्षाके फलको गाँवोंमें ले जायेंगे। अपने वैज्ञानिक ज्ञानका प्रसार गाँवोंके लोगोंमें आप कैसे करेंगे? क्या आप गाँवोंको ध्यानमें रखते हुए विज्ञान पढ़ रहे हैं, और क्या आप इतने कुशल और व्यावहारिक बन सकेंगे कि इतने शानदार, सामानवाले शानदार कालेजोंमें जो ज्ञान आप प्राप्त करते हैं, उसका उपयोग गाँवोंके लाभके लिए करें?

और अन्तमें मैं एक ऐसे यन्त्रकी बात आपके सामने रखता हूँ जिसपर आप अपने वैज्ञानिक ज्ञानका प्रयोग कर सकते हैं, और वह यन्त्र है मामूली चीज--चरखा। भारतके सात लाख गाँव आज इसी सीधे-सादे यन्त्रके अभावमें दिन-प्रतिदिन विपन्न होते जा रहे हैं। सिर्फ एक सदी पहले भारतके घर-घरमें चरखा था, और उस समय भारत वैसा काहिल देश नहीं था, जैसा कि आज है। तब उसके किसान जो कुल जनसंख्याके ८५ प्रतिशत हैं, सालमें कमसे-कम चार महीने बेकार रहनेको मजबूर नहीं थे। यह मैं नहीं बता रहा हूँ, यह मेरी बनाई हुई बात नहीं है। यह एक अर्थशास्त्री श्री हिगिनबॉटमका कथन है। उन्होंने इधर कर-समितिके सामने वक्तव्य दिया है और उनका कहना है कि भारतकी बढ़ती हुई गरीबी घटनेके बजाय तबतक बढ़ती रहेगी जबतक कि भारतके करोड़ों लोगोंके पास कोई सहायक धन्धा नहीं होगा। अब आप अपने वैज्ञानिक साधनोंके सहारे पता चलाइए कि एसा कौन-सा सहायक धन्धा हो सकता है जो १,९०० मील लम्बे और १,५०० मील चौड़े धरातलपर फैले हुए ७,००,००० गाँवोंकी जरूरतोंको पूरा कर सकता है। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आप मजबूर होकर इस नतीजेपर पहुँचेगे कि केवल चरखा ही ऐसा कर सकने में समर्थ है।

आज चरखेका इस्तेमाल नहीं हो रहा है। जहाँ-कहीं मैं जाता हूँ चरखेको माँग करता हूँ और मुझे चरखेके नामपर जो चीज मिलती है वह तो एक खिलौनाभर है। इन खिलौनोंसे मुझे वह सूत नहीं मिल सकता जो आपको अच्छी खादी दे सके। देशमें चरखेकी गूँज सुनाई दे, यह तो आपपर निर्भर है। मैं आपके सामने बंगाल कैमिकल वर्क्स के संस्थापक डा० प्रफुल्लचन्द्र रायका सुन्दर उदाहरण रखता हूँ। बंगाल कैमिकल वर्क्स एक बढ़ती हुई संस्था है, जिसने सैकड़ों छात्रोंको काम दिया है। डा० राय वैज्ञानिकोंमें भी अग्रगण्य हैं। वे भारतमें गाँववालोंको अपने वैज्ञानिक ज्ञानका लाभ देना चाहते है। उन्होंने खुलनाके अकालके समय काम करते हुए चरखेका रहस्य समझा, और आप जानते हैं कि आज वे अपना जीवन केवल चरखके प्रचारमें लगा रहे हैं और उनके अधीन काम करनेवाले सभी कार्यकर्त्ता, जो सब वैज्ञानिक है, चरखे और चरखेके जरूरी उपसाधनोंको अधिक से अधिक उन्नत बनानेकी कोशिशमें लगे हुए हैं। यह एक श्रेष्ठ कार्य है। यह वैज्ञानिकोंके योग्य है। ईश्वर करे आपके मनमें भी इसके प्रति उत्साह उत्पन्न हो और वह स्थायी बने। आपने मुझे धैर्यपूर्वक सुना इसके लिए धन्यवाद। (हर्षध्वनि)।

१. इलाहाबादके कृषि-संस्थानसे सम्बद्ध।