प्रधानाचार्य महोदयने तब महात्माजीको माला पहनाई और एक सुन्दर गुलदस्ता भेंट किया। महात्माजीने कहा:
मैंने सोचा था कि माला हाथ-कते सूतकी होगी।
कारमें बैठते हुए उन्होंने कहा:
अगली बार मैं आप सबको खद्दर पहने देखना चाहता हूँ, आपके अपने बुने हुए खद्दरमें।
'वन्दे मातरम्' और हर्षध्वनिके बीच महात्माजीने साइंस कालेजसे प्रस्थान किया।
१७१. भाषण: त्रिवेन्द्रमकी सार्वजनिक सभामें
१३ मार्च, १९२५
महात्माजीने सभी अभिनन्दनपत्रोंका उत्तर एक साथ देते हुए त्रावणकोरकी राजमाताको तथा दोवान महोदयको सार्वजनिक रूपसे धन्यवाद दिया। महात्माजी उनसे वाइकोम संघर्षके सिलसिलेमें मिले थे और उन्होंने शिवगिरि मठमें स्वामी नारायण गुरुसे भी भेंट की थी। वहाँ उन्होंने कुछ पुलाया बालकोंको संस्कृत श्लोंकोंका पाठ करते सुना था। महात्माजीने कहा कि एजवाहा लोग स्वच्छ हैं और देशको किसी सर्वश्रेष्ठ जातिसे किसी प्रकार कम नहीं है। स्वामीजी वाइकोमकी निषिद्ध सड़कोंमें प्रवेश नहीं कर सकते यह देखकर मेरी धार्मिक, मानवीय और राष्ट्रीयताको भावनाको ठेस लगती है।
वाइकोमके रुढ़िवादी लोगोंके साथ हुई अपनी बातचीतका उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि मैंने उनके सामने स्वीकृतिके लिए तीन प्रस्ताव रखे। पहला यह था कि वाइकोममें या सम्पूर्ण त्रावणकोरमें केवल सवर्ण हिन्दुओंकी मतगणना करा ली जाये जिसे रुढ़िवादियोंके प्रतिनिधियोंने स्वीकार नहीं किया, बल्कि कहा कि जिनके अपने निश्चित विश्वास है वे लोग बहुमतका निर्णय मानने के लिए बाध्य नहीं हैं। दूसरा प्रस्ताव मैंने यह रखा कि रुढ़िवादियोंके निश्चित विश्वासोंके प्रामाणिक आधार भारतके विद्वान् शास्त्रियोंके सामने रखे जायें। इसके जवाबमें कहा गया कि प्रमाणोंकी प्रामाणिकता और व्याख्याके बारेमें शास्त्रियोंका निर्णय अपने अनुकूल न होनेपर वे उसे अस्वीकार करनेको स्वतन्त्र होंगे। तीसरा प्रस्ताव मैंने यह रखा कि सत्याग्रहियोंकी ओरसे में एक शास्त्रीको पंच नामजद करूँगा और विरोधी लोग अपना एक पंच
१. त्रावणकोरके नागरिकों, केरल हिन्दू सभा, मानवदया संघ, स्थानीय कांग्रेस कमेटी तथा खिलाफत कमेटी और हिन्दीके विद्यार्थियों द्वारा दिये गये अभिनन्दन-पत्रोंके उत्तरमें।
२ खिए "वाइकोमके सवर्ण हिन्दू नेताओंके साथ बातचीत", १०-३-१९२५।