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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नामजद करें। इन दोनोंके बीच मध्यस्थके पदपर दीवान महोदय रहेंगे। मैंने कहा कि पंच और मध्यस्थका जो निर्णय होगा उसे मैं अपने लिए बाध्यकारी मानूँगा। ये तीनों प्रस्ताव अब भी कायम है। सवर्ण हिन्दुओं और समस्त हिन्दू समाजसे मेरा अनुरोध है कि वे वाइकोममें कट्टर पन्थियोंके पूर्वग्रहको मिटा दें और जनमतके भारी दबावसे इन रास्तोंको अस्पृश्यों और अन्त्यजोंके लिए खुलवा दें। राजमाता और दीवान, दोनोंने मेरे प्रस्तावोंको पसन्द किया और सुधारकोंके साथ अपनी सहानुभूति प्रकट की, और दोनोंने वादा किया है कि वे इस समय कोई कानून तो नहीं बनायेंगे लेकिन अन्य सभी तरीकों से सुधार-आन्दोलनकी अपनी सामर्थ्य भर सहायता करेंगे। मुझे विश्वास है कि संगठित जनमत कानूनी कदम उठाकर भी सुधारकोंको सहायता करेगा। मैंने राजमातासे मतगणना करानको कहा है, लेकिन वे वैसा कर सकें या न कर सकें, जनमत संगठित करनेसे तो आपको कोई नहीं रोक सकता। विवेक-शून्य कट्टरता स्थानीय जन-आलोचनाका तेज नहीं सह सकेगी, बशर्ते कि यह आलोचना सहानुभूतिपूर्ण, अहिंसक और विनम्र हो। मलाबारमें ६० हजार ब्राह्मणोंके मुकाबिले आठ लाख अब्राह्मण और १७ लाख अस्पृश्य हैं। उनमें शिक्षाका प्रसार देख कर मुझे खुशी होती है; लेकिन उन्हें सामान्य अधिकारोंसे भी वंचित नहीं किया जाना चाहिए। सभामें काफी संख्यामें उपस्थित महिलाओंसे खद्दर पहननेकी अपीलके बाद महात्माजीने अपना भाषण समाप्त किया।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, १४-३-१९२५

१७२. भाषण: अभिनन्दन-पत्रके उत्तरमें

१४ मार्च, १९२५

अभिनन्दन-पत्रके उत्तरमें महात्माजीने कहा:

त्रावणकोरमें मैंने जो कुछ देखा है, उसके आधारपर मैं, आपके द्वारा त्रावणकोर राजपरिवारके प्रति मानपत्रमें व्यक्त किये गये उदारभावोंका हार्दिक समर्थन कर सकता हूँ। जैसा कि मैंने अपने साथी मित्रोंको बताया है, त्रावणकोरके राजपरिवारकी सादगीपर मैं मुग्ध हो गया हूँ। मैं भारतके बहुतसे राजाओं और उनके रहनसहनसे परिचित हूँ। और मैं स्वीकार करता हूँ कि मैंने त्रावणकोरके राजघराने में इस सादगीसे भरे जीवनको देखनेकी बिलकुल आशा नहीं की थी। मुझे लगा कि जिस चोजने मुझे इतना विमोहित किया है यदि उसे सार्वजनिक रूपसे व्यक्त न करूँ तो यह अशिष्टता, यहाँतक कि सत्यको छिपाना होगा।

१. यह अभिनन्दन-पत्र त्रिवेन्द्रम नगरपालिका द्वारा दिया गया था।