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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कातनके पक्षमें प्रस्ताव पास करनेके लिए बधाई दी। गांधीजीने कहा कि आप लोग इस सम्बन्धमें सच्चे दिलसे और लगनके साथ कार्य करें।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, १६-३-१९२५

१७३. भाषण: लॉ कालेज, त्रिवेन्द्रममें

१४ मार्च, १९२५

फोर्ट हाइस्कूल और महिला मन्दिरमें थोड़ी-थोड़ी देर रुकने के बाद महात्माजी लॉ कालेज पहुँचे जहाँ कालेजके कार्यवाहक प्रधानाचार्य श्री एम० के० गोविन्द पिल्लैने उनका स्वागत किया। कालेजके छात्रों की ओरसे एक अभिनन्दनपत्र भेंट किया गया। उसका उत्तर देते हुए महात्माजीने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा, इंग्लैंडकी पहली यात्रा आदिकी चर्चा की और बताया कि किस प्रकार ४० वर्ष पहले उन्होंने उस समय जबकि पहले ही वकीलोंकी भरमार थी, वकालतके पेशमें पैर रखा था। उन्होंने वकालतका इरादा रखनेवाले छात्रोंको सलाह दी कि उनके लिए तथ्योंकी पूरी जानकारी और मानव-स्वभावकी समझ जरूरी है और जो भी मामला उनके सामने आये उसका पूरा-पूरा अध्ययन करनेके बाद अगर लगे कि मामला न्यायसम्मत है तो वे उसे हाथमें लें, वरना छोड़ दें। वकीलोंकी हैसियतसे उन्हें पैसेके लिए अपनी आत्मा नहीं बेच देनी चाहिए। जब कोई ठीक और सही मामला उनको मिले, तो फिर उन्हें मुवक्किलके मामलेको अपना मामला समझकर पैरवी करनी चाहिए। जो सवालात ठीक लगे उनके आधारपर मुवक्किलकी बातोंमें आये बिना उन्हें सभी तथ्य मालूम कर लेने चाहिए।

गांधीजीने कहा:

आप जानते हैं कि मैंने वकीलों और उनके तरीकोंकी बहुत कड़ी और कटु आलोचना की है। लेकिन अगर मैं ऐसा न करूँ तो कौन करेगा, क्योंकि मैं वकालतके पेशेकी अच्छाइयों, बुराइयों और पेचीदगियोंसे परिचित हूँ। इसीलिए इस पेशेके सम्बन्धमें मेरे मनमें जो-कुछ था उसे मैंने साहसके साथ कहा है।

स्वर्गीय सर फीरोजशाह मेहता और बदरुद्दीन तैयबजी वकीलोंकी हैसियतसे सबसे श्रेष्ठ तो नहीं थे, लेकिन राष्ट्र के लिए उनकी सेवाएँ अमूल्य थीं। स्वर्गीय मनमोहन घोष गरीबोंके मित्र थे और जब किसी गरीबका मुकदमा उनके हाथमें आता तो वे फीस नहीं लेते थे। बंगालमें नील-बागानोंसे सम्बन्धित उपद्रवोंके समय उन्होंने बहुमूल्य सेवा की।

१. मनमोहन घोषने हिन्दू पैट्रियटमें नील बागानोंके बारेमें लिखकर आन्दोलन खड़ा किया था, जिसके फलस्वरूप एक आयोग नियुक्त किया गया।