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ज्ञानकी शोधमें

श्री घोष-जैसे वकीलोंके जीवनका अध्ययन करने की सलाह देते हुए महात्मा गांधीने कहा कि इन महान् वकीलोंने भावी वकीलोंके लिए जो विरासत छोड़ी है, उससे ही आप सन्तुष्ट न हों, बल्कि मैं चाहता हूँ कि आगेकी पीढ़ियाँ उनसे भी ज्यादा अच्छे काम कर दिखायें। उन्हें हर अर्थमें गरीबोंका मित्र बन जाना चाहिए और तभी वे वकालतके पेशेका औचित्य सिद्ध कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि आपका लक्ष्य जरूरतसे ज्यादा पैसा या जीवन में मान कमाना नहीं, बल्कि मातृभूमिकी सेवा करनेके लिए मानवताकी सेवा करना है। आप लोगोंको झगड़े बढ़ाने के लिए वकील नहीं बनना है। आप जो शिक्षा प्राप्त करते हैं वह आजीविका कमाने-जैसे तुच्छ कामके लिए नहीं होनी चाहिए। बल्कि उसका उपयोग नैतिक उत्थानके उद्देश्यसे होना चाहिए ताकि आप अपने-आपको पहचान सकें और समझ सकें कि आपके ऊपर आपका सिरजनहार बैठा सब-कुछ देख रहा है; वह आपके नेक और बद सब विचारोंका लेखा रखता है। आप जो ज्ञान प्राप्त करते हैं उसका उपयोग कठोर आत्मविश्लेषणके लिए है, न कि पैसा कमाने भरके लिए।

अन्तमें महात्माजीने छात्रोंको चरखका सन्देश दिया और कहा कि आप याद रखें कि न तो कानूनको किताबोंसे और न मंचोंसे दिये गये भाषणों ही से बल्कि केवल चरखसे आप भारतको स्वतन्त्रता प्राप्त कर सकते हैं।

पिछले दिनकी सार्वजनिक सभामें एकत्र किये गये ५०० रुपये महात्माजीको भेंट किये गये।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, १६-३-१९२५

१७४. ज्ञानकी शोधमें

१५ मार्च, १९२५

फ्रांसके एक लेखकने एक कहानी लिखी है। उसका शीर्षक 'ज्ञानकी शोधमें' रखा जा सकता है। लेखक कितने ही विद्वानोंको भिन्न-भिन्न देशोंमें ज्ञानकी शोधके लिए भेजता है। शोधकोंका एक दल हिन्दुस्तान आता है और उस दलके सदस्य ब्रह्मज्ञानियों, शास्त्रियों, दरबारियों, इत्यादिके दरवाजे खटखटाते हैं, परन्तु ज्ञान उन्हें कहीं नहीं मिलता। उक्त शोधक-दल ज्ञानका अर्थ ईश्वरकी खोज मानता है। अन्तमें वे एक अन्त्यजके घर पहुँचते हैं। वहाँ वे भक्तिकी पराकाष्ठा देखते हैं। वहाँ उन्हें पहली बार सरलता, सादगी तथा निष्कपटता देखनको मिलती है। वहाँ उन्हें ईश्वरका साक्षात्कार होता है और वे इस निश्चयपर पहुँचते हैं कि जो व्यक्ति अनायास ईश्वरसे साक्षात्कार करना चाहता है उसे ईश्वरकी खोज गरीब और तिरस्कृत लोगोंमें करनी चाहिए।