पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/३३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३०४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह वार्ता तो कल्पित है, परन्तु हमारे शास्त्र इसी बातका साक्ष्य देते हैं। सुदामाको भगवान् सहजमें मिल गये। और मीराबाई जब रानी नहीं रही तब भगवान्से मिल पाई। दुर्योधन कृष्णके सिरहाने जाकर बैठा तो उसे भगवान्के केवल अपनी सेना दी। वे सारथि तो हुए पैरोंके पास बैठनेवाले अर्जुनके।

ये विचार मेरे मनमें नीचे लिखे पत्रको पढ़कर उत्पन्न हो रहे हैं:

इस पत्रका लेखक निर्मल-हृदय है। वह ज्ञानकी शोधमें है। पर ज्यों-ज्यों वह ज्ञानको खोजता है त्यों-त्यों उसे ज्ञान दूर भागता हुआ दिखाई देता है। जो चीज बुद्धिके द्वारा नहीं प्राप्त हो सकती उसके लिए वह बुद्धिका प्रयोग कर रहा है। फिर ईश्वरको प्राप्त करनेके लिए वह जो अक्ल लड़ा रहा है उसका फल देखनके लिए भी बहुत व्याकुल है। कर्मके फलकी आशा न रखनेका अर्थ यह नहीं कि फल मिलेगा ही नहीं बल्कि कर्म तो कोई भी निष्फल नहीं जाता, और संसारकी विचित्र रचना ऐसी रहस्यमयी है कि यही समझमें नहीं आता कि इस वृक्षका तना कौनसा है और शाखा कौनसी। तब फिर अनेक मनुष्योंके अनेक कर्मोके समुदायके सम्मिलित फलमेंसे एक व्यक्तिके कर्मके फलको कौन छाँट ले सकता है? और इसका हमें अधिकार भी क्या है? एक राजाके सिपाहीको भी अपने किये कर्मका फल जाननेका अधिकार नहीं होता तो फिर हमें, जो कि इस संसारके सिपाही हैं, अपने कर्मके फलको जानकर क्या करना है? क्या यही ज्ञान काफी नहीं है कि कर्मका फल अवश्य मिलता है?

पर इस लेखकके हृदयमें न तो राम-नाममें और न ईश्वरमें ही श्रद्धा है। उसे मेरी सलाह है कि वह करोड़ोंके अनुभवपर श्रद्धा रखे। संसार ईश्वरके होनेसे कायम है। राम-नाम ईश्वरका एक नाम है। राम-नाम न रुचे तो वह ईश्वरकी उपासना अपनी मर्जीके किसी दूसरे नामसे कर सकता है। अजामिलका उदाहरण झूठ है, ऐसा माननेका कोई कारण नहीं। सवाल यह नहीं है कि अजामिल हुआ था या नहीं; बल्कि यह है कि ईश्वरका नाम लेता हुआ वह पार हो गया या नहीं। पौराणिकोंने मनुष्य जातिके अनुभवोंका जो वर्णन किया है उनकी अवहेलना करना इतिहासकी अवहेलना करना है। मायाके साथ संघर्ष तो चल ही रहा है। अजामिल-जैसोंने यद्ध करते हुए नारायण-नामका जप किया है। मीराबाई उठते-बैठते, सोते-जागते, खातेपीते, गिरिधरका नाम जपती थी। युद्धके बदले में राम-नाम नहीं लिया जा सकता बल्कि करते हुए उसका जप युद्धको पवित्र बनाता है। राम-नाम लेनेवाला, द्वादश मन्त्र जपनेवाला व्यक्ति मायाके साथ संघर्ष करते हुए नहीं थकता, बल्कि मायाको ही थका देता है। इसीसे कविने गाया है--

'माया मोहित करे सभीको, हरिजनसे वह हारी रे।

१. यह पत्र यहीं नहीं दिया जा रहा है। इसमें २५ वर्षीय एक नवयुवकने धर्म सम्बन्धी अपनी कुछ शंकाएँ व्यक्त की थीं।

२. माया सहुने मोह पमाडे हरिजन थी रहि हारी रे।