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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जो अपने पिताके प्रति प्रेमभाव रखता है, पिताकी प्रशंसा नहीं किया करता। उसी प्रकार यदि बाप बेटे की तारीफ हर समय किया करे तो उस बापसे बेटेका भला होनेके बजाय बुरा ही होनेकी सम्भावना है; इसी प्रकार मित्र यदि मित्रकी स्तुति करता है तो वे दोनों एक दूसरेके लिए गड्ढा खोदते हैं।

इसलिए महादेवको मेरी सलाह है कि वे उक्त लेखककी आलोचनाके सारको समझें और तदनुसार कार्य करें। मैं भी और सावधान रहनेका प्रयत्न करूँगा।

इसमें भी एक कठिनाई तो रहती है। वह यह कि मैं महादेवके सब लेखोंको 'नवजीवन' में छपनेसे पहले पढ़ नहीं सकता; और बादमें भी पढ़नेका समय नहीं मिलता; इस कारण कुछ बातें ऐसी छप जाती हैं जिन्हें मैं समयपर पढ़ पाऊँ तो निकाल दूँ। इस स्थितिमें यदि 'नवजीवन' अन्यथा उपयोगी सेवा कर रहा हो तो इस ग्राहक-जैसे पाठकगण कृपया उक्त दोषको, जिस हदतक वह अनिवार्य हो उस हदतक दरगुजर करें।

'नवजीवन' का शिक्षा सम्बन्धी अंक भी सेवाके निमित्त ही निकाला गया है। यह निश्चय किया गया कि विद्यापीठ अपनी शिक्षा-सम्बन्धी मासिक पत्रिका 'नवजीवन' के परिशिष्टांकके रूपमें निकाला करे तो व्ययकी काफी बचत हो सकती है। यह अंक उस निश्चयके बाद निकाला गया है। उससे भी लोगोंको राष्ट्रीय शिक्षाकी सही तस्वीर मिलती है; इसलिए इससे ग्राहकोंका हताश होना स्वाभाविक ही है। यदि सत्य नीरस हो, कष्टप्रद हो तो भी उपयुक्त अवसर आनेपर उसे व्यक्त करना ही पड़ता है। इस समय राष्ट्रीय शिक्षाकी गतिविधि शिथिल है; इसलिए उससे सम्बन्धित लेखे-जोखमें निराशाजनक समाचार ही हो सकते हैं। किन्तु इस अन्धकारपूर्ण निराशामें आशाकी किरणें दिखाई देने लगी हैं। उनमें कितने बालक पढ़ते हैं, इस बातकी ओर पाठक ध्यान न दें। किन्तु जिन कठिनाइयोंके बीच हमारी राष्ट्रीय शिक्षाकी नौका आगे बढ़ रही है; पाठक उनकी ओर ध्यान दें। आज राष्ट्रीय शिक्षा द्वारा बालकोंको जो सिखाया जा रहा है उससे उनमें निर्भयता और स्वराज्य लेनेकी योग्यता आयेगी एवं उनकी शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति होगी।

'नवजीवन' का मूल्य क्यों नहीं घटाया जा सकता, अब यह बतानेकी आवश्यकता नहीं रहती। फिर भी मैं यह तो कह ही दूँ कि 'नवजीवन' के ग्राहक 'नवजीवन' के मालिक हैं, इतना ही नहीं बल्कि जो लाभ होता है उसका कोई निजी उपयोग नहीं किया जाता; वह भी लोकोपयोगी सम्पत्ति है। 'नवजीवन' मासिक नहीं बनाया जा सकता है, क्योंकि उसमें केवल लेख ही नहीं होते, स्वराज्यकी प्रगतिका साप्ताहिक विवरण भी रहा करता है।


[गुजरातीसे]
नवजीवन, १५-३-१९२५