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टिप्पणी

मेहताका पवित्र वचन है कि "ज्यां लगी आतमा तत्व चीन्ह्यो नहीं त्यां लगी साधना सर्व झूठी।" आत्म-तत्त्वको पहचाननेके मानी हैं अहिंसामय होना। अहिंसामय होनेका अर्थ है विरोधीके प्रति भी प्रेमभाव रखना, अपकारीका भी उपकार करना, बुराईका बदला भलाईसे देना और ऐसा करते हुए यह मानना कि यह कोई अनोखी बात नहीं है, यह तो हमारा कर्तव्य है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १५-३-१९२५

१७७. टिप्पणी

एक शिक्षकका दुःख

एक शिक्षक लिखते हैं:

उक्त शिक्षकने जो प्रश्न पूछे हैं उनका उत्तर भी उन्होंने स्वयं दे दिया है। इससे मेरा काम कुछ हलका हो गया है। मेरे कहनेका आशय यह तो माना ही नहीं जा सकता कि दस शिक्षक या एक शिक्षक केवल एक ही बालकको पढ़ाकर आराम करने लग जाये; मेरा अभिप्राय तो यह है कि दस नहीं यदि बीस शिक्षक भी हों और विद्यार्थी एक ही हो तो भी वे शालाका त्याग न करें वरन् विद्यार्थियोंकी संख्या बढ़ानेका प्रयत्न करें। जब विद्यार्थी पर्याप्त संख्यामें मिलने लगें तो शिक्षक अपनी आजीविका-भरके लिए वेतन लें, पर प्रतिकूल परिस्थितिमें कुछ भी वेतन न लेने में उनकी सच्ची कसौटी है, भले ही वे स्वयं और उनके आश्रित जन भी भूखों मरें। ऐसा शिक्षक अपने कार्यके निमित्त अपने सगे-सम्बन्धियों, माँ-बाप, बालबच्चों और अपने सर्वस्वकी आहुति दे देता है। जब लोग दूसरे धन्धोंमें अपनी पूँजी गँवा बैठते हैं, तब वे क्या करते हैं? यथाशक्ति प्रयत्न करनेपर भी जब मनुष्यको कोई काम-काज नहीं मिलता तब वह अपना और अपने बाल-बच्चोंका भूखों मरना सहन कर लेता है। राष्ट्रीय शालाओंके शिक्षकोंके विषयमें भी यही बात लागू होनी चाहिए। इससे उनके आश्रित भी पेट भरने लायक पैसा कमानेके लिए काम करने लगेंगे। जिन दिनों शिक्षक विद्यार्थियोंके न होनेके फलस्वरूप बेकार रहें उन दिनों वे अवश्य दूसरा काम उठा ले सकते हैं; किन्तु तब भी उनकी शालाओंके उद्धारका प्रयत्न करते ही रहना चाहिए। दूसरा काम खोज लिया जाये, इसका अर्थ यही है कि यदि विद्यार्थी न हों और समय व्यर्थ जा रहा हो तो उसमें शिक्षक धुनाई या बुनाईका काम करके अपना गुजारा करें।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १५-३-१९२५

१. यह नहीं दिया जा रहा है।