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१७८. भाषण: कोट्टयममें

१५ मार्च, १९२५

मुझे ईसाई मतावलम्बी लोगोंके मुख्य केन्द्र कोट्टयममें आ सकनेसे खुशी हुई है। दुनियाके सभी देशोंमें मेरे बहुतसे ईसाई दोस्त हैं, और मैं भारतके ईसाइयोंसे बहुत उम्मीद रखता हूँ। मैंने देशके सामने जो कार्यक्रम रखनेका साहस किया है, उसमें ऐसी कोई भी चीज नहीं है जिसमें ईसाई लोग हार्दिक सहयोग न दे सकते हों। मैं तो यहाँतक कहनेको तैयार हूँ--और विनम्रतापूर्वक यही निवेदन करूँगा कि यदि कोई ईसाई इस रचनात्मक कार्यक्रममें सच्चे दिलसे भाग नहीं लेता तो वह सही अर्थ में ईसाई धर्मका पालन नहीं करता। अगर ईसाई लोग, जो इस देशमें जन्मे और बड़े हुए हैं और जिनके लिए यह भूमि उसी प्रकार मातृभूमि है जिस प्रकार मेरी या मुसलमानोंकी है, अगर वे लोग इस देशके विकासमें सहायक नहीं बनते तो मैं कहूँगा कि वे उस हदतक ईसाइयतसे विमुख होते हैं। ऐसा नहीं हो सकता कि आप ईश्वरकी सेवा तो करें और अपने पड़ोसीकी सेवा करनेसे इनकार करें। जो व्यक्ति अपने पड़ोसीकी उपेक्षा करता है वह हिन्दू, ईसाई या मुसलमान कोई भी हो, अपने ईश्वरसे विमुख होता है। इसलिए मैं अपने ईसाई मित्रोंसे कहूँगा कि वे अपनी शक्ति-भर भारतकी सेवा करना अपना विशेष सौभाग्य और विशेष कर्त्तव्य मानें।

हमारे जुदा-जुदा धर्म हो सकते हैं, ईश्वरके बारेमें हमारी कल्पनाएँ भिन्न-भिन्न हो सकती हैं; और मुक्तिके विषयमें हमारे विचार भिन्न हो सकते हैं। लेकिन एक चीज है जो सभी भारतीयोंको इस देशकी धरतीसे बाँधती है। एक चीज है जो सभी भारतीयोंको अटूट बन्धनमें बाँधती है, और वह चीज है चरखा और उससे बननेवाला खद्दर। मैं समय-असमय खद्दर और चरखेकी बात कहता ही रहता हूँ, क्योंकि मैं जानता हूँ कि खद्दरमें ही, चरखे में ही भारतकी आर्थिक मुक्तिकी कुंजी है। चरखा एक प्रतीक है, जनसाधारण और उच्च वर्गोंको आपसमें बाँधनेवाले बन्धनका। जनसाधारणका श्रम ही उच्च वर्गोंका जीवनाधार है, और उच्च वर्गोंसे मेरी विनती है कि वे जनसाधारणसे जो कुछ पाते हैं उसके बदले कुछ थोड़ा-सा प्रतिदान दें। इसलिए मैं प्रत्येक भारतीयसे, भारतमें निवास करनेवाले अंग्रेजोंसे भी, बल्कि भारतसे अपनी आजीविका प्राप्त करनेवाले प्रत्येक व्यक्तिसे कहता हूँ कि वह खद्दरको अपनाये। अपने घरमें वह सिरसे पैरतक खद्दर ही पहने और इस प्रकार जनसाधारणको प्रतिदान दे। (हर्षध्वनि)

मैं कोट्टयम और आसपासके इलाकोंकी महिलाओंसे और पुरुषोंसे कहता हूँ, "अगर आप चरखेको अपने घरोंमें पुन: प्रतिष्ठित करेंगे तो आप देखेंगे कि इस

१. यह भाषण कोट्टयम नगरपालिका और हिन्दी छात्रोंकी ओरसे दिये गये अभिनन्दन-पत्रों के उत्तरमें दिया गया था।