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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

था। इसलिए मैं दिल्ली गया। गत जनवरी मासके आखिरी सप्ताहमें परिषद् द्वारा नियुक्त समितिकी बैठक हुई। उसमें अखिल भारतीय गोरक्षा मण्डल स्थापित करनेका निश्चय किया गया। संगठनका संविधान तैयार किया गया, और उसे समितिने मंजूर किया। यह मण्डल जितना-कुछ कर पाया है, इसका मुख्य श्रेय वाईके प्रख्यात गोसेवक चौंडे महाराजको है। उन्हींकी इच्छा और साहससे प्रेरित होकर मैं यह काम कर पा रहा हूँ। दादासाहब करन्दीकर, लाला लाजपतराय, बाबू भगवानदास, श्री केलकर, डाक्टर मुंजे, स्वामी श्रद्धानन्दजी इत्यादि इस समितिके सदस्य हैं। परन्तु भारत भूषण मालवीयजीके बिना इस मण्डलके अस्तित्वको मैं असम्भव मानता हूँ। इसलिए मैंने यह निवेदन किया कि उसे जनताके सामने लानेके पहले उनकी स्वीकृति प्राप्त कर लेना आवश्यक है। इसे सबने स्वीकार किया और उन्हें इस संस्थाके विधि-विधानको दिखानेका काम मेरे जिम्मे पड़ा। उन्हें वह दिखाया गया और उन्होंने इसे पसन्द किया।

लेकिन इसे प्रकाशित करने में मुझे संकोच होता है, क्योंकि उसका अध्यक्ष अभी तक मैं ही हूँ। मूल संस्थापकोंकी इच्छा यह है कि मैं ही उसका अध्यक्ष बना रहूँ। मुझे अपनी योग्यताके बारेमें शंका रहती है। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि जबतक इस महान् कार्यमें अगुआ गिने जानेवाले हिन्दुओंकी सहमति न होगी तबतक इसमें विशेष प्रगति न हो सकेगी। मुझे अपने दिलमें हमेशा यह भय बना रहता है कि कहीं मेरे अस्पृश्यता-सम्बन्धी दृढ़ विचारोंके कारण मेरा अध्यक्ष होना इसके लिए हानिकारक साबित न हो। मैंने अपनी यह आशंका चौंडे महाराजजीपर प्रकट की। उनका खयाल है कि मेरे अस्पृश्यता-विषयक विचारोंका इस कार्यसे कुछ भी सम्बन्ध नहीं है और यदि सम्बन्ध है, इस विचारसे कोई उससे अलग रहता है तो भी यह जोखिम उठाकर इस कार्यको आगे बढ़ाना हमारा धर्म है।

यह धर्म है या नहीं सो मैं नहीं जानता। लेकिन समितिने जिस विधानको स्वीकार किया है, उसे मैं जनताके समक्ष रख रहा हूँ। मझे आशा है कि मैं २६को बम्बई पहुँच जाऊँगा। तब इस नियमावलीको मंजूर करानेके लिए एक सभा बुलानेकी तारीख तय की जायेगी। तारीख तय हो जाये तो सभा बुलाई जायेगी।

हे द्रौपदीके सहायक! तू मेरी सहायता कर। तू ही मुझ अनाथका नाथ बन। यह तू ही जानता है कि मुझे गोरक्षासे कितना प्रेम है। यदि यह प्रेम शुद्ध हो तो तू इस अयोग्य सेवकको योग्य बना लेना। तेरी डाली हुई अनेक जिम्मेदारियोंको मैंने उठा रखा है। उसमें यदि यह एक और बढ़ानी हो तो बढ़ा देना। मेरी शर्म तो तू ही ढँक सकता है।

पाठक, मेरे हृदयकी पीड़ा आप नहीं समझ सकेंगे। यह मैं बड़े तड़के लिख रहा हूँ और लिखते हुए मेरे हाथ काँप रहे हैं। आँखोंमें आँसू हैं। कल ही कन्या-

१. बॉम्बे सीक्रेट एक्सटैक्टस, १९२५ के अनुसार यह बैठक २४ जनवरीको हुई थी।

२. रघुनाथ पांडुरंग करन्दीकर, (१८५७-१९३५), सुप्रसिद्ध वकील और सार्वजनिक कार्यकर्त्ता।

३. नागपुरके प्रख्यात नेत्रचिकित्सक, हिन्दू महासभाके नेता, १९३० के गोलमेज परिषद्के सदस्य।