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पत्र: कल्याणजी वि० मेहताको

कुमारीके दर्शन करके लौटा हूँ। जो विचार हृदयमें उमड़ रहे हैं, यदि समय मिला तो उन्हें आपके सामने रखूँगा। जिस प्रकार किसी बालकको खूब खानेकी इच्छा तो हो पर खानेकी शक्ति न होनेके कारण वह फूट-फूट कर रोता है, मेरी स्थिति भी कुछ वैसी ही है। मैं लोभी हूँ। मैं धर्मकी विजय देखने और उसे संसारके सामने रखने के लिए बड़ा आतुर हूँ। इसके लिए आवश्यक कार्य करनेकी मुझे बड़ी अभिलाषा रहती है। मुझे हिन्द-स्वराज्य भी इसीलिए चाहिए। गोरक्षा, चरखा-प्रचार, हिन्दू-मुस्लिम एकता, अस्पृश्यता निवारण, और मद्यपान-निषेध सब इसीलिए चाहिए। इनमें से मैं क्या करूं और क्या न करूँ? तूफानी समुद्र में मेरी अभिलाषा-रूपी नैया डोल रही है।

एक समय समुद्र में एक बड़ा भयंकर तूफान आया। सब यात्री व्याकुल हो गये। सबने नरसिंह मेहताके इष्ट देवको स्मरण किया। मुसलमान अल्लाह-अल्लाह पुकारने लगे। हिन्दुओंने राम-राम जपना शुरू किया। पारसी भी अपने धर्मग्रन्थका पाठ करने लगे। मैंने सभीके चेहरोंपर चिन्ता देखी। तूफान शान्त हुआ और सबके-सब खुश हो गये। खुश होनेपर वे ईश्वरको भूल गये और ऐसा व्यवहार करने लगे मानो कभी तूफान आया ही न हो।

मेरी स्थिति विचित्र है। मैं तो हर क्षण तूफान ही में रहता हूँ और इसलिए सीतापति को नहीं भूल सकता। लेकिन जब कभी बहुत बड़े तूफानके बीच फंस जाता हूँ तब तो मैं अपने उन साथियोंसे भी अधिक विकल हो जाता हूँ और "पाहि माम् पाहि माम्" पुकार उठता हूँ।

इतनी प्रस्तावना लिखने के बाद मैं गोमाताका स्मरण करके, परमात्माका ध्यान करके, इस मण्डलके संविधानको जनताके समक्ष रखता हूँ।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २२-३-१९२५

१८०. पत्र: कल्याणजी वि० मेहताको

सोमवार [१६ मार्च, १९२५]

भाई कल्याणजी,

तुम्हें तार देनेकी इच्छा हुई थी; किन्तु लोभके वश होकर पैसेकी बचत करनेका निश्चय किया। मैंने तुम्हारी रिहाईकी खबर आज ही 'नवजीवन' में पढ़ी है। रिहा हो गये, अच्छा हुआ। मैं २७ तारीखको आश्रममें पहुँचूँगा। तुम मुझे आश्रममें मिलोगे ही। आशा है तुम्हारा स्वास्थ्य अच्छा हो गया होगा।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (जी० एन० २६७८) की फोटो-नकलसे।

१. यहाँ नहीं दिया गया है। देखिए "अ० भा० गोरक्षा मण्डलके संविधानका मसविदा", २४-१-१९२५।

२. साबरमती जेलसे कल्याणजीकी रिहाईकी खबर १५-३-१९२५ के नवजीवनमें छपी थी।