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भाषण: परूरमें

चरखा कातेंगे, जैसा कि वे सीमा-रेखापर अब कर रहे हैं। जबतक यह समझौता रहेगा तबतक वे सीमा-रेखाको कदापि पार नहीं करेंगे। मैं आशा करता हूँ कि यदि कभी उस तथाकथित अधिकार या प्रथाके विरुद्ध, जिसके अन्तर्गत तथाकथित अस्पृश्योंको मन्दिरके आसपासकी सड़कोंका उपयोग करनेसे रोका गया है, अदालतमें मुकदमा चलानेकी जरूरत पड़ेगी तो वह मुकदमा त्रावणकोरके आम फौजदारी कानूनके अन्तर्गत ही चलाया जायेगा। किन्तु मुझे आशा है कि त्रावणकोर सरकारकी सहायतासे जनमतको इस प्रकार सुगठित किया जायेगा कि वह दुर्निवार हो जाये और दोनों पक्षों द्वारा कानूनकी शरण लिये बिना सार्वजनिक या अर्ध सार्वजनिक सड़कोंका उपयोग करनेसे किसी भी व्यक्तिको, फिर वह किसी भी जातिका क्यों न हो, रोका न जा सके। मैंने आपके सामने जो तीन प्रस्ताव रखे थे उनपर मैं आपसे पहले ही बातचीत कर चुका हूँ। वे प्रस्ताव हैं: चुने हुए क्षेत्रोंमें सवर्ण हिन्दुओंका मत लेकर जनमत जानना, पंच निर्णय या हिन्दू शास्त्रोंके उन प्रमाणोंकी व्याख्या और परीक्षण करना जिनको कट्टरपन्थी कुछ मन्दिरोंके आसपासकी सड़कोंके उपयोगके सम्बन्धमें अपने समर्थनमें उद्धृत करते हैं। इनमें से एक या सभी सुझावोंको स्वीकार करने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए।

इस पत्रको समाप्त करते हुए त्रावणकोरके मेरे दौरेमें बहुत ही अच्छा प्रबन्ध करने के लिए मैं आपको हार्दिक धन्यवाद देना चाहता हूँ।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी पत्र (एस० एन० १३२६७) की माइक्रोफिल्मसे।

१८२. भाषण: परूरमें

१८ मार्च, १९२५

महात्माजीने उत्तर देते हुए कहा कि आप जिस बातका निश्चय करते हैं उसका अक्षरशः पालन भी करते हैं; यह आपकी परम्परा ही है। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि नगरपालिकाके सदस्योंने आजसे चरखा चलाने और खद्दर पहननेका अपना जो निश्चय व्यक्त किया है उसको वे तत्परताके साथ पूरा करेंगे। मुझे इस बातका दुःख है कि त्रावणकोरमें अस्पृश्यता और अनुपगम्यता बहुत बुरी तरहसे फैली हुई है। आप लोगोंका अपनी मातृभूमि एवं हिन्दू धर्मके प्रति यह कर्तव्य है कि उसे दूर कर दें। मैं देखता हूँ, आप लोगोंकी रुचि इतनी सादी है कि बहुतसे कपड़े

१. पुलिस कमिश्नरके उत्तरके लिए देखिए "तार: डब्ल्यू० एच० पिटको", २४-३-१९२५ की पाद-टिप्पणी।

२. यह भाषण परूर नगरपालिका, नागरिकों और एजवाहों द्वारा दिये गये अभिनन्दन-पत्रके उत्तरमें दिया गया था।