यहाँ माँग है कि "हमें विदेशी शासनसे मुक्त होने दो तब मजदूरोंको अपना प्राप्य मिल जायेगा।" मुझे विश्वास नहीं होता कि ब्रिटिश सरकारकी जगह जिन लोगोंके आने की सम्भावना है, वे मजदूरों और किसानोंके साथ न्याय करेंगे।
कुछ भी हो, जिस स्थितिमें मैं काम करने के लिए तैयार हुआ हूँ वह इस प्रकार है: मजदूरों और किसानोंको भारतीय पूँजीवादियों या ब्रिटिश सरकारके हाथोंका खिलौना नहीं बनना चाहिए। उन्हें अपने हितोंकी देखभाल स्वयं करनी चाहिए और जहाँतक उनके हितोंमें ही केवल वहींतक उनको 'सहयोग' या 'असहयोग' करना चाहिए। उन लोगोंमें चरखका प्रचार अवश्य किया जाना चाहिए और यदि वे सालके खाली महीनोंमें मुकदमेबाजी करनेके बजाय अपने कपड़े बनानके लिए सूत कातें तो ज्यादा अच्छा होगा क्योंकि उनकी आजीविका तो वर्षाके ४ महीनोंपर पूरी तरह निर्भर है। उष्ण कटिबन्धके उपनिवेशोंकी तरह नहीं जहाँ साल-भर वर्षा होती है।
भारत एक अच्छा देश है, लेकिन उसे देशी और विदेशी लोगोंने मिलकर नरक बना दिया है! हे भगवान, यह दशा कबतक रहेगी!
मुझे आशा है कि श्री मणिलाल डाक्टरको गाँवोंमें किसानोंके हर घरमें चरखा पहुँचाने और ऐसा करते हुए उन्हें इन लोगोंकी आर्थिक स्थितिकी पूरी-पूरी जाँच करने में सफलता मिलेगी। हमें जरूरत इस बातकी है कि हम भारतके कुछ गाँवोंको चुनकर उनका धैर्यपूर्वक और ठीक-ठीक अध्ययन करें। जैसा कि डाक्टर मैनने दक्षिणके कुछ गाँवोंके सम्बन्धमें कुछ साल पहले किया था और उसकी रिपोर्ट प्रकाशित की थी।
१८७. कठिन समस्या
आन्ध्रके एक पत्र-लेखकने अपनी मुश्किलोंका इस प्रकार वर्णन किया है:
गत सप्ताहके 'यंग इंडिया में एक बंगाली सज्जनके अस्पृश्यता-विषयक पत्रके जवाबमें आपने कहा है, "जब हम शूद्रोंके हाथका पानी पी लेते हैं तब हमें अस्पृश्योंके हाथका पानी लेलेनमें संकोच नहीं होना चाहिए। 'हम' से मतलब सवर्ण हिन्दुओंसे है। मैं उत्तर भारतमें प्रचलित रिवाजोंको नहीं जानता। लेकिन क्या आप यह जानते है कि आन्ध्रमें और हिन्दुस्तानके दक्षिणके दूसरे भागोंमें केवल इतना ही नहीं कि ब्राह्मण लोग अब्राह्मणों (दूसरे तीन वर्णों) के हाथका पानी नहीं पीते बल्कि जो लोग अधिक कट्टर हैं वे तो अब्राह्मणोंके साथ एकदम अछूतोंका-सा व्यवहार करते हैं।
१. सर हैरोल्ड एच० मैन, सुप्रसिद्ध रसायनशास्त्री, तथा समाज-सेवी। वम्बई प्रान्तके कृषिसंचालक।