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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आपने अक्सर यह बात कही है कि आप जातिगत ऊँच-नीचके मिथ्या भावको दूर करनेके लिए रोटी-व्यवहार रखनेकी आवश्यकताको जरूरी नहीं मानते हैं। एक बार आपने इस बातको साबित करने के लिए मालवीयजीका उदाहरण भी पेश किया था और कहा था कि परस्पर आदर और सद्भाव होनेपर भी यदि मालवीयजी आपके हाथका पानी या दूसरी कोई चीज पीने या खानेसे इनकार कर दें तो आपके खयालसे यह आपका तिरस्कार न होगा। मैं यह मानता हूँ कि उनके ऐसा करनेके पीछे तिरस्कारको भावना न होगी, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस प्रान्तके ब्राह्मण, १०० गजके फासलेसे भी यदि कोई अब्राह्मण उनका खाना देख ले तो उसे न खायेंगे--खाना छू जानेकी बात तो दूर रही। मैं आपको बता देना चाहता हूँ कि राह चलता कोई शूद्र यदि एक-आध शब्द भी कह दे तो भोजन करते हुए ब्राह्मणको उतनसे ही गुस्सा आ जायेगा और फिर वह दिन-भर कुछ न खायेगा। यदि यह तिरस्कार नहीं तो फिर क्या है? क्या यह ब्राह्मणोंकी अहंमन्यता नहीं है? क्या आप इस विषयपर प्रकाश डालेंगे? मैं स्वयं एक ब्राह्मण युवक हूँ और इसलिए अपने अनुभवसे ही ये बातें लिख रहा हूँ।

अस्पृश्यता बहुमुखी दानव है। यह धर्म और नीतिको दृष्टिसे बड़ा ही गम्भीर प्रश्न है। मेरी दृष्टिमें रोटी व्यवहार एक सामाजिक प्रश्न है। निश्चय ही वर्तमान अस्पृश्यताकी ओटमें मनुष्य-जातिके कुछ लोगोंके प्रति तिरस्कार भाव छिपा हुआ है। यह एक घुन है जो समाजको अन्दर-ही-अन्दरसे खोखला कर रहा है। मनुष्यको अछूत मानना उसके बुनियादी हकोंसे इनकार करना है। रोटी व्यवहार न रखना और अस्पृश्यता एक ही चीज नहीं है। समाज सुधारकोंसे मेरी प्रार्थना है कि वे इन दोनोंको एक-जैसा न मानें। यदि वे ऐसा करेंगे तो वे "अस्पृश्यों और अनुपगम्यों" के हितको हानि पहुँचायेंगे। इस ब्राह्मण पत्र-लेखककी कठिनाई सच्ची कठिनाई है। इससे मालूम होता है कि यह बुराई कितनी गहरी पैठ गई है। ब्राह्मण शब्द तो नम्रता, अहंविस्मृति, त्याग, पवित्रता, साहस, क्षमा, और सत्यज्ञानका पर्यायवाची होना चाहिए, जैसा वह एक समय था। लेकिन आज तो यह पवित्रभूमि ब्राह्मण-अब्राह्मणके आपसी वैमनस्यसे अभिशप्त है। बहुत बातोंमें ब्राह्मणोंने अपनी उस श्रेष्ठताको खो दिया है जिसका उन्होंने दावा कभी नहीं किया था, लेकिन जो उन्हें सेवाके बलपर प्राप्त थी। ब्राह्मण लोग जिसका आज दावा नहीं कर सकते, वे उसी श्रेष्ठताको फिरसे पानेके लिए जी-तोड़ प्रयत्न कर रहे हैं और इससे हिन्दुस्तानके कुछ भागोंमें अब्राह्मणोंको उनके प्रति ईर्ष्या हो गई है। हिन्दू धर्म और देशके सद्भाग्यसे पत्र लेखक-जैसे ब्राह्मण भी हैं जो इस भयंकर कुप्रवृत्तिके खिलाफ अपनी पूरी ताकतके साथ लड़ रहे हैं और अब्राह्मणोंकी निस्वार्थ भाव और लगनसे बराबर सेवा कर रहे हैं। यह उनकी महान् परम्पराके अनुरूप है। जहाँ-कहीं देखें आज ब्राह्मण ही सबसे आगे आकर अस्पृश्यताके विरुद्ध संघर्ष कर रहे हैं और अपने पक्षके समर्थनमें शास्त्रोंकी साक्षी देते हैं। पत्र-लेखकने दक्षिण