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कठिन समस्या

के जिन ब्राह्मणोंका जिक्र किया है, उनसे मेरी प्रार्थना है कि वे समयको पहचानें और ऊँच-नीचकी गलत धारणाको मनसे निकाल दें तथा इस बहमको भी छोड़ दें कि अब्राह्मणको देखने-मात्रसे पाप लगता है और उनकी आवाज सुनकर उनका भोजन अपवित्र हो जाता है। ब्राह्मणोंने ही ब्रह्मको सर्वत्र देखनेकी संसारको शिक्षा दी है तो फिर बाहर अपवित्रता कहाँसे आयेगी। वह तो मनका विकार है। आज ब्राह्मण यह सन्देश फिर दोहराये कि अस्पृश्यताका विचार, कुविचार है। उसीने संसारको यह शिक्षा दी है "आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः" मनुष्य स्वयं ही अपना उद्धारक है और स्वयं अपना शत्रु तथा नाशक भी वही है।

इस आन्ध्र पत्र-लेखकने जिन बातोंका उल्लेख किया है, उनसे अब्राह्मणोंको क्षुब्ध नहीं होना चाहिए। इस पत्र-लेखक-जैसे कितने ही ब्राह्मण उनके संघर्ष में उसी तरह भाग लेंगे जिस तरह वे खुद ले रहे हैं। कुछ लोगोंके पापोंके कारण ब्राह्मणोंकी सारी जातिको ही नहीं धिक्कारना चाहिए। मुझे डर है कि यह वृत्ति बढ़ रही है। अब्राह्मण इतने उदार बनें कि अभद्र व्यवहार करनेवालोंसे अच्छे व्यवहारकी आशा ही न करें। कोई राहगीर यदि मेरी तरफ नहीं देखता है अथवा वह मेरे छूनेसे या मेरी उपस्थितिसे या मेरी आवाजसे अपनेको अपवित्र हुआ समझता है तो इसको मैं अपना अपमान नहीं मानूँगा। इतना ही काफी है कि उसके कहनसे मैं अपने रास्तेसे न हटूँ, या वह सुन लेगा इस डरसे बोलना बन्द न करूँ। जो अपनेको उच्च मानता है उसके अज्ञान और अन्धविश्वासपर मुझे दया आ सकती है लेकिन मैं उसपर क्रोध और उसका तिरस्कार नहीं कर सकता। क्योंकि यदि मेरा तिरस्कार किया जायेगा तो मुझे भी बुरा लगेगा। संयम खो देनेसे तो अब्राह्मणोंका मामला ही बिगड़ जायेगा। सबसे महत्त्वकी बात तो यह है कि कहीं हदसे आगे बढ़कर वे अपने ब्राह्मण समर्थकोंको दिक्कतमें न डाल दें। ब्राह्मण तो हिन्दू धर्म और मानवताका सबसे अधिक महकतादमकता प्रसून है। मैं ऐसा एक भी काम न करूँगा जिससे वह मुरझा जाये। मैं यह जानता हूँ कि वह अपनी रक्षा करने में समर्थ है। वह पहले भी बहुत-सी आँधियोंका सामना कर चुका है। लेकिन अब्राह्मण यह कहनेका मौका न दें कि उन्होंने इस प्रसूनकी सुवास और सौन्दर्यको मसल देनेका प्रयत्न किया है। मैं नहीं चाहता कि ब्राह्मणोंको बरबाद करके अब्राह्मण ऊँचे उठे। मैं यह जरूर चाहता हूँ कि वे उस ऊँचाईको पहुँच जायें जहाँ अबतक ब्राह्मण पहुँचे हुए थे। ब्राह्मण जन्मसे होते हैं लेकिन ब्राह्मणत्व जन्मसे नहीं होता। यह तो वह गुण है जिसको हममें से छोटेसे-छोटा आदमी भी अपने में विकसित कर सकता है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १९-३-१९२५